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    Dev Uthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी पर करें तुलसी चालीसा का पाठ, खुश होंगे भगवान विष्णु

    Updated: Thu, 23 Oct 2025 03:35 PM (IST)

    देवउठनी एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। यह कार्तिक महीने शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस साल यह व्रत 1 नवंबर, 2025 को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा से जागते हैं, जिससे सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। इस पावन अवसर पर तुलसी पूजन का विशेष महत्व है। वहीं, इस दिन तुलसी चालीसा का पाठ परम कल्याणकारी 

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    Dev Uthani Ekadashi 2025: तुलसी चालीसा का पाठ।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Dev Uthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। यह हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। यह कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है। इस साल यह पावन पर्व 1 नवंबर, को मनाया जाएगा। इसी दिन भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा से जागते हैं और फिर सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं, जिससे सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है। इस दिन तुलसी पूजन का भी विधान है। ऐसे में तुलसी के सामने दीपक जलाएं। उन्हें लाल चुनरी, फूल-माला अर्पित करें। इसके बाद तुलसी चालीसा का पाठ और अंत में आरती करें। ऐसा करने से श्रीहरि विष्णु की कृपा मिलती है।

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    ।।तुलसी चालीसा का पाठ।।

    श्री तुलसी महारानी, करूं विनय सिरनाय।

    जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय।।

    नमो नमो तुलसी महारानी, महिमा अमित न जाय बखानी।

    दियो विष्णु तुमको सनमाना, जग में छायो सुयश महाना।।

    विष्णुप्रिया जय जयतिभवानि, तिहूँ लोक की हो सुखखानी।

    भगवत पूजा कर जो कोई, बिना तुम्हारे सफल न होई।।

    जिन घर तव नहिं होय निवासा, उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा।

    करे सदा जो तव नित सुमिरन, तेहिके काज होय सब पूरन।।

    कातिक मास महात्म तुम्हारा, ताको जानत सब संसारा।

    तव पूजन जो करैं कुंवारी, पावै सुन्दर वर सुकुमारी।।

    कर जो पूजन नितप्रति नारी, सुख सम्पत्ति से होय सुखारी।

    वृद्धा नारी करै जो पूजन, मिले भक्ति होवै पुलकित मन।।

    श्रद्धा से पूजै जो कोई, भवनिधि से तर जावै सोई।

    कथा भागवत यज्ञ करावै, तुम बिन नहीं सफलता पावै।।

    छायो तब प्रताप जगभारी, ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी।

    तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन, सकल काज सिधि होवै क्षण में।।

    औषधि रूप आप हो माता, सब जग में तव यश विख्याता,

    देव रिषी मुनि औ तपधारी, करत सदा तव जय जयकारी।।

    वेद पुरानन तव यश गाया, महिमा अगम पार नहिं पाया।

    नमो नमो जै जै सुखकारनि, नमो नमो जै दुखनिवारनि।।

    नमो नमो सुखसम्पति देनी, नमो नमो अघ काटन छेनी।

    नमो नमो भक्तन दुःख हरनी, नमो नमो दुष्टन मद छेनी।।

    नमो नमो भव पार उतारनि, नमो नमो परलोक सुधारनि।

    नमो नमो निज भक्त उबारनि, नमो नमो जनकाज संवारनि।।

    नमो नमो जय कुमति नशावनि, नमो नमो सुख उपजावनि।

    जयति जयति जय तुलसीमाई, ध्याऊँ तुमको शीश नवाई।।

    निजजन जानि मोहि अपनाओ, बिगड़े कारज आप बनाओ।

    करूँ विनय मैं मात तुम्हारी, पूरण आशा करहु हमारी।।

    शरण चरण कर जोरि मनाऊं, निशदिन तेरे ही गुण गाऊं।

    क्रहु मात यह अब मोपर दाया, निर्मल होय सकल ममकाया।।

    मंगू मात यह बर दीजै, सकल मनोरथ पूर्ण कीजै।

    जनूं नहिं कुछ नेम अचारा, छमहु मात अपराध हमारा।।

    बरह मास करै जो पूजा, ता सम जग में और न दूजा।

    प्रथमहि गंगाजल मंगवावे, फिर सुन्दर स्नान करावे।।

    चन्दन अक्षत पुष्प् चढ़ावे, धूप दीप नैवेद्य लगावे।

    करे आचमन गंगा जल से, ध्यान करे हृदय निर्मल से।।

    पाठ करे फिर चालीसा की, अस्तुति करे मात तुलसा की।

    यह विधि पूजा करे हमेशा, ताके तन नहिं रहै क्लेशा।।

    करै मास कार्तिक का साधन, सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं।

    है यह कथा महा सुखदाई, पढ़े सुने सो भव तर जाई।।

    तुलसी मैया तुम कल्याणी, तुम्हरी महिमा सब जग जानी।

    भाव ना तुझे माँ नित नित ध्यावे, गा गाकर मां तुझे रिझावे।।

    यह श्रीतुलसी चालीसा पाठ करे जो कोय।

    गोविन्द सो फल पावही जो मन इच्छा होय।।

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