Dev Uthani Ekadashi 2025: इन मंत्रों के जप से करें लक्ष्मी नारायण जी को प्रसन्न, अन्न-धन से भर जाएंगे भंडार
हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागृत होते हैं, जिसे देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस साल यह 1 नवंबर को है। इस शुभ अवसर पर कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। ज्योतिषियों के अनुसार, लक्ष्मी नारायण की पूजा और मंत्रों का जप करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

Dev Uthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी का धार्मिक महत्व
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा से जागृत होते हैं। इस शुभ अवसर पर देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। इस साल शनिवार वैदिक 01 नवंबर को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी। वहीं, रविवार 02 नवंबर को तुलसी विवाह है।

ज्योतिषियों की मानें तो कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी देवउठनी एकादशी पर कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इन योग में लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करने से साधक की हरमनोकामना पूरी होगी। अगर आप भी लक्ष्मी नारायण जी की कृपा पाना चाहते हैं, तो देवउठनी एकादशी के दिन पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।
विष्णु मंत्र
1. ॐ वासुदेवाय विघ्माहे वैधयाराजाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे अमृता कलसा हस्थाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||
2. शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥
3. ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये
धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥
4. ऊँ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम ।।
5. वृंदा,वृन्दावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी |
पुष्पसारा,नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी ।।
एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |
य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत।।
6. ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥
7. पद्मानने पद्म पद्माक्ष्मी पद्म संभवे तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्।
8. दन्ताभये चक्र दरो दधानं, कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया, लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।
ॐ देवानां च ऋषीणां च गुरु कांचन संन्निभम्।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।।
9. ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
10. मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥
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