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    Dev Uthani Ekadashi 2024: देवउठनी एकादशी पर करें श्री हरि स्तोत्र का पाठ, भौतिक सुखों में होगी वृद्धि

    Updated: Sun, 10 Nov 2024 02:23 PM (IST)

    हर माह कृष्ण और शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि का व्रत रखने का विधान है। इस बार यह व्रत 12 नवंबर को रखा जाएगा। ऐसा माना जाता है कि इस दिन श्री हरि विष्णु ...और पढ़ें

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    Dev Uthani Ekadashi 2024: देवउठनी एकादशी पर करें श्री हरि स्तोत्र का पाठ।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। देवउठनी एकादशी का दिन बहुत ही कल्याणकारी माना जाता है। यह दिन पूरी तरह से भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। इस तिथि पर भगवान विष्णु चार महीने की अवधि के बाद जागते हैं, जिसे चातुर्मास के अंत का प्रतीक भी माना जाता है। देवउठनी एकादशी हर साल अत्यंत श्रद्धा के साथ मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल यह पर्व 12 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा। वहीं, अगर आप श्री हरि की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं,

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    तो आपको इस शुभ (Dev Uthani Ekadashi 2024) अवसर श्री हरि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इससे सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है, तो आइए यहां पर पढ़ते हैं।

    ।।श्री हरि स्तोत्र।।

    जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं

    शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं

    नभोनीलकायं दुरावारमायं

    सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं ॥

    सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं

    जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं

    गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं

    हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं ॥

    रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं

    जलान्तर्विहारं धराभारहारं

    चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं

    ध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं ॥

    जराजन्महीनं परानन्दपीनं

    समाधानलीनं सदैवानवीनं

    जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं

    त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं ॥

    कृताम्नायगानं खगाधीशयानं

    विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं

    स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं

    निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं ॥

    समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं

    जगद्विम्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं

    सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं

    सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं ॥

    सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं

    गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं

    सदा युद्धधीरं महावीरवीरं

    महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं ॥

    रमावामभागं तलानग्रनागं

    कृताधीनयागं गतारागरागं

    मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं

    गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं ॥

    ।।फलश्रुति।।

    इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तं

    पठेदष्टकं कण्ठहारम् मुरारे:

    स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं

    जराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो ॥

    ।।धन्वंतरि मंत्र।।

    ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:

    अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय

    त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप

    श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥

    ॐ नमो भगवते धन्वन्तरये अमृत कलश हस्ताय सर्व आमय

    विनाशनाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णवे नमः ||

    ।।श्री हरि विष्णु पूजन मंत्र।।

    शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं,

    विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।

    लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्,

    वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥

    ॥ आरती श्री लक्ष्मी जी की॥ (Laxmi Mata Aarti)

    ॐ जय लक्ष्मी माता,मैया जय लक्ष्मी माता।

    तुमको निशिदिन सेवत,हरि विष्णु विधाता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता॥

    उमा, रमा, ब्रह्माणी,तुम ही जग-माता।

    सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत,नारद ऋषि गाता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता॥

    दुर्गा रुप निरंजनी,सुख सम्पत्ति दाता।

    जो कोई तुमको ध्यावत,ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता॥

    तुम पाताल-निवासिनि,तुम ही शुभदाता।

    कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी,भवनिधि की त्राता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता॥

    जिस घर में तुम रहतीं,सब सद्गुण आता।

    सब सम्भव हो जाता,मन नहीं घबराता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता॥

    तुम बिन यज्ञ न होते,वस्त्र न कोई पाता।

    खान-पान का वैभव,सब तुमसे आता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता॥

    आर्थिक तंगी हो जाएगी दूर

    शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर,क्षीरोदधि-जाता।

    रत्न चतुर्दश तुम बिन,कोई नहीं पाता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता॥

    महालक्ष्मी जी की आरती,जो कोई जन गाता।

    उर आनन्द समाता,पाप उतर जाता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता॥

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