प्रकृति को परिभाषित करता भौतिक विज्ञान
भौतिक विज्ञान प्रमुखतया उन नियमों की खोज करता है, जिनसे संपूर्ण जगत संचालित हो रहा है। आध्यात्मिक जगत का भी यही प्रयास रहा। दोनों ही जगत का सत्य जानने के माध्यम हैं। वेदों के आरंभ में सृष्टि की सृजन प्रक्रिया के प्रति जिज्ञासा व्यक्ति की गई है। ऋषि जीवन के हर एक सत्य को जानने क
भौतिक विज्ञान प्रमुखतया उन नियमों की खोज करता है, जिनसे संपूर्ण जगत संचालित हो रहा है। आध्यात्मिक जगत का भी यही प्रयास रहा। दोनों ही जगत का सत्य जानने के माध्यम हैं। वेदों के आरंभ में सृष्टि की सृजन प्रक्रिया के प्रति जिज्ञासा व्यक्ति की गई है।
ऋषि जीवन के हर एक सत्य को जानने के लिए सतत प्रयासरत रहे। उनके द्वारा अनुभूत भौतिक विज्ञान के कई सत्य आज भी संपूर्ण विश्व को आश्चर्यचकित करते हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं :
न्यूटन से बहुत पहले आर्यभट्ट, ब्रहमगुप्त, भास्कर आदि वैज्ञानिकों की कृतियों में गुरुत्वाकर्षण का उल्लेख है।
परमाणु का ज्ञान भी भारतीयों को हजारों वर्ष पहले हो गया था। उन्होंने परमाणु का आकार निश्चित कर दिया था। कणाद मुनि के वैशेषिक दर्शन में इसका स्पष्ट संकेत मिलता है। जैन शास्त्रों में भी परमाणु की जानकारी दी गई।
राजा भोज के यंत्रसार नामक ग्रंथ में कहा गया- जहाजों की पेंदी के तख्तों को जोड़ने के लिए लोहे को काम में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि समुद्र में स्थित चुंबकीय चत्रनें स्वभावत: लोहे को अपनी ओर खीचेंगी। यानी तब भारतीयों को चुंबकीय शक्ति का भी ज्ञान था। भारतीय वैज्ञानिक चुंबकीय सुई (कंपास) बनाना भी जानते थे। जब वे जावा, सुमात्रा आदि द्वीपों में गए, तो साथ में कुतुबनुमा भी लेकर गए, जिसे मत्स्य यंत्र कहा जाता था।
यजुर्वेद में कहा गया है - पृथ्वी अग्नि को उसी प्रकार अपनी गोद में रखती है, जिस प्रकार मां अपने बच्चे को। शतपथ ब्राहमण में पृथ्वी को अग्निगर्भा कहा गया। यानी उन्हें पृथ्वी की आंतरिक संरचना का ज्ञान था।
जैमिनी ब्राहमण के अनुसार, पृथ्वी ही नहीं, सभी ग्रह गोल हैं।
साभार : देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार
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