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    Churakarm sanskar: शिशु की तेज वृद्धि के लिए जरूरी है यह संस्कार, जानें क्या है इसका महत्व

    By Shilpa SrivastavaEdited By:
    Updated: Mon, 31 Aug 2020 12:00 PM (IST)

    Churakarm sanskar जब बच्चे के सिर के बाल पहली बार उतारे जाते हैं तो उसे चूड़ाकर्म यानी मुण्डन संस्कार कहते हैं। जब शिशु की आयु एक वर्ष तीन वर्ष पांच वर्ष या सात वर्ष हो जाती है.

    Churakarm sanskar: शिशु की तेज वृद्धि के लिए जरूरी है यह संस्कार, जानें क्या है इसका महत्व

    Churakarm sanskar: जब बच्चे के सिर के बाल पहली बार उतारे जाते हैं तो उसे चूड़ाकर्म यानी मुण्डन संस्कार कहते हैं। जब शिशु की आयु एक वर्ष, तीन वर्ष, पांच वर्ष या सात वर्ष हो जाती है तब बच्चे के बाल उतारे जाते हैं। मान्यता है कि इससे सिर मजबूत होता है। साथ ही बुद्धि भी तेज होती है। सिर्फ यही नहीं, इससे बच्चे के बालों में जो किटाणु चिपके रह जाते हैं वो भी नष्ट हो जाते हैं। इससे शिशु को स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति होती है। मान्यता है जब शिशु गर्भ से बाहर आता है तो उसके सिर के बाल उसके माता-पिता के दिए होते हैं। ये बाल अशुद्ध होते हैं। इन्हें काटने से शिशु की शुद्धि होती है। दरअसल, हमारे सिर में ही मस्तिष्क भी होता है। अत: इस संस्कार को करने से मस्तिष्क की पूजा करने का संस्कार भी माना जाता है। चूड़ाकर्म संस्कार का उद्देश्य जातक का स्वस्थ मानसिक और सकारात्मकता के साथ सार्थक रुप से उसका सदुपयोग करना होता है। इस संस्कार से शिशु की तेज वृद्धि होती है।  

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    ज्योतिषाचार्य पं. गणेश प्रसाद मिश्र ने बताया कि चूड़ाकर्म संस्कार का फल बल, आयु तथा तेज की वृद्धि करना है। इसे प्रायः तीसरे वर्ष, पांचवें या सातवें वर्ष अथवा कुल परम्परा के अनुसार करने का विधान है। मस्तक के भीतर ऊपर को जहां पर बालों का भंवर होता है वहां सम्पूर्ण नाड़ियों एवं संधियों का मेल हुआ है। उसे अधिपति नाम का मर्मस्थान कहा गया है। इस मर्मस्थान की सुरक्षा के लिए ऋषियों ने उस स्थान पर चोटी रखने का विधान किया है। यथा-

    नि वर्तयाम्यायुषेऽन्नाधाय प्रजननाय।

    रायस्पोषाय सुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय॥

    अर्थात् 'हे बालक! मैं तेरे दीर्घायु के लिए तथा तुम्हें अन्न के ग्रहण करने में समर्थ बनाने के लिए, उत्पादन-शक्ति-प्राप्ति के लिए, ऐश्वर्य-वृद्धि के लिए, सुन्दर संतान के लिए, बल तथा पराक्रम-प्राप्ति के योग्य होने के लिए तेरा चूडाकरण (मुण्डन) संस्कार करता हूं।' इस मन्त्र से बालक को सम्बोधित करके शुभ मुहूर्त में कुशल नाई से बालक का मुण्डन कराएं। बाद में सिर में दही-मक्खन लगाकर बालक को स्नान कराकर माङ्गलिक क्रियाएं करनी चाहिए।