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    Chhath Puja History: क्या है छठ पूजा का महत्व, यहां पढ़ें पौराणिक कथा

    Chhath Puja History कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा का पर्व मनाया जाता है जो इस बार 20 नवंबर को है। छठ पूजा का चार दिवसीय व्रत संतान की खुशहाली और अच्छे जीवन की कामना के लिए किया जाता है।

    By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Fri, 20 Nov 2020 07:34 AM (IST)
    Chhath Puja History And Significance: क्या है छठ पूजा का महत्व, यहां पढ़ें पौराणिक कथा

    Chhath Puja History And Significance: कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा का पर्व मनाया जाता है जो इस बार 20 नवंबर को है। छठ पूजा का चार दिवसीय व्रत संतान की खुशहाली और अच्छे जीवन की कामना के लिए किया जाता है। यह अनुपम व्रत सूर्योपासना का है। इस दौरान सूर्यदव की पूजा की जाती है। से किया जाता है। सूर्योपासना का यह अनुपम पर्व है। यह व्रत केवल महिला ही नहीं बल्कि पुरुष द्वारा भी किया जाता है। आइए जानते हैं छठ पर्व का इतिहास और उसका महत्व।

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    छठ पूजा का महत्व:

    छठ पूजा का महत्व बहुत ज्यादा है। यह व्रत सूर्य भगवान, उषा, प्रकृति, जल, वायु आदि को समर्पित है। इस त्यौहार को मुख्यत: बिहार में मनाया जाता है। इस व्रत को करने से नि:संतान दंपत्तियों को संतान सुख प्राप्त होता है। कहा जाता है कि यह व्रत संतान की रक्षा और उनके जीवन की खुशहाली के लिए किया जाता है। इस व्रत का फल सैकड़ों यज्ञों के फल की प्राप्ति से भी ज्यादा होता है। सिर्फ संतान ही नहीं बल्कि परिवार में सुख समृद्धि की प्राप्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है।

    छठ पूजा का इतिहास:

    पौराणिक कथा के अनुसार, एक राजा था जिसका नाम प्रियंवद था। राजा की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए राजा ने यज्ञ करवाया। यह यज्ञ महर्षि कश्यप ने संपन्न कराया और यज्ञ करने के बाद महर्षि ने प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर प्रसाद के रुप में ग्रहण करने के लिए दी। यह खीर खाने से उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई लेकिन उनका पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। यह देख राजा बेहद व्याकुल और दुखी हो गए। राजा प्रियंवद अपने मरे हुए पुत्र को लेकर शमशान गए और पुत्र वियोग में अपने प्राण त्यागने लगे।

    इस समय ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। देवसेना ने राजा से कहा कि वो उनकी पूजा करें। ये देवी सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं। यही कारण है कि ये छठी मईया कही जाती हैं। जैसा माता ने कहा था ठीक वैसे ही राजा ने पुत्र इच्छा की कामना से देवी षष्ठी का व्रत किया। यह व्रत करने से राजा प्रियंवद को पुत्र की प्राप्ति हुई। कहा जाता है कि छठ पूजा संतान प्राप्ति और संतान के सुखी जीवन के लिए किया जाता है।

    डिसक्लेमर

    'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '