Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य के अनुसार विष के समान है ये कार्य
Chanakya Niti चाणक्य नीति का अध्ययन न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी किया जाता है। आचार्य चाणक्य ने शिक्षक और मार्गदर्शक के रूप में अनेकों युवाओं का मार्गदर्शन किया जाता। आइए जानते हैं आचार्य चाणक्य ने अभ्यास के विषय में क्या कहा जानिए।

नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क | Chanakya Niti: चाणक्य नीति को ज्ञान का महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है। विद्वानों के अनुसार इसमें बताई गई नीतियों का पालन करने से व्यक्ति जीवन के कई कठिन बाधाओं को आसानी से पार कर लेता है और जीवन में सफलता के कई अवसर प्राप्त करता है। बता दें कि आचार्य चाणक्य की गणना विश्व के श्रेष्ठतम विद्वानों में की जाती है। उनके द्वारा रचित चाणक्य नीति कई प्रतिभावान युवाओं का मार्गदर्शन कर रही है। चाणक्य नीति में जीवन के उस हिस्सों को को सम्मिलित किया गया है जिन्हें कई लोग अनदेखा कर देते हैं। इसके साथचाणक्य नीति में यह भी बताया गया है कि व्यक्ति को किन-किन कार्यों से बचना चाहिए। आइए जानते हैं-
Chanakya Niti: चाणक्य नीति में इस कार्य को बताया गया है विष
अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम्।
दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम्।।
अर्थात- चाणक्य नीति के अनुसार अच्छा दिखने वाला भोजन जिस तरह पेट में जाते ही बदहजमी का कारण बन जाता है और विष का काम करता है। उसी तरह अभ्यास न करने से शास्त्रों का ज्ञान भी व्यर्थ हो जाता है और विष के समान घातक बन जाता है।
चाणक्य नीति के इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने बताया है कि व्यक्ति को कभी भी अभ्यास नहीं त्यागना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि किसी भी चीज का अभ्यास एक व्यक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है। जो व्यक्ति निरंतर अभ्यास करता है। वह किसी भी परेशानी को आसानी से सुलझा सकता है। वहीं जो व्यक्ति अभ्यास को त्याग देता उसे जीवन भर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शिक्षा के क्षेत्र अभ्यास पर ही विद्यार्थी का भविष्य टिका हुआ होता है। इसलिए जो छात्र परिश्रम और निरंतर अभ्यास करता है उसे हमेशा सफलता मिलती है वहीं जो कार्य को टालता रहता है उसके लिए किसी भी प्रकार की शिक्षा व्यर्थ हो जाती है। इसलिए आधा अधूरा कार्य और अभ्यास एक व्यक्ति और खासकर विद्यार्थी के लिए विष के समान। व्यक्ति को ऐसे व्यवहार से बचना चाहिए और अपना काम ईमानदारी से करना चाहिए।
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