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    Chanakya Niti: हिंसक और दुष्ट व्यक्ति के साथ कैसा होना चाहिए आपका व्यवहार, जानिए आचार्य चाणक्य से

    Chanakya Niti चाणक्य नीति ने अनेकों युवाओं का मार्ग दर्शन किया है। इसके साथ यह भी बताया है कि व्यक्ति को अपने जीवन कैसा व्यवहार और कर्तव्य का पालन करना चाहिए। इसके साथ जीवन में किस तरह सफलता प्राप्त की जाती है इस विषय में भी बताया है।

    By Shantanoo MishraEdited By: Updated: Mon, 17 Oct 2022 12:31 AM (IST)
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    Chanakya Niti: चाणक्य नीति के ज्ञान से व्यक्ति कभी नहीं देखता असफलता का चेहरा।

    नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क | Chanakya Niti: विश्व के श्रेष्ठतम विद्वानों में आचार्य चाणक्य की गणना की जाती है। उन्होंने चाणक्य नीति के माध्यम से अनगिनत युवाओं का मार्गदर्शन किया था। आचार्य चाणक्य ने न केवल अर्थनीति, युद्ध नीति और राजनीति का ज्ञान दिया था। बल्कि, जीवन में सफलता पाने के लिए किस तरह से जीवनयापन किया जाए इस विषय की भी शिक्षा प्रदान की। आज के समय में भी चाणक्य नीति (Chanakya Niti in Hindi) अनेकों युवाओं का मार्गदर्शन कर रही है। इसमें यह बताया गया है कि व्यक्ति का कैसा व्यवहार उसे सफलता की सीढ़ी पर उच्च स्थान तक पहुंचाता है। चाणक्य नीति के इस भाग में आइए जानते हैं जीवन में सफलता के लिए कैसा व्यवहार जरूरी है।

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    Chanakya Niti: मधुर भाषा प्रयोग में कैसी गरीबी

    प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति मानवाः ।

    तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ।।

    अर्थात- मधुर वचन बोलने वाला व्यक्ति दान के समान कार्य करता है। इससे सभी को आनंद की प्राप्ति होती है। इसलिए सभी लोगों को मधुर अथवा मीठा वचन बोलना चाहिए। बोलने में किस बात की गरीबी!

    चाणक्य नीति के श्लोक में आचार्य चाणक्य ने एक महत्वपूर्ण ज्ञान दिया है। उन्होंने बताया है कि व्यक्ति का व्यवहार उसके बोलने से पता चलता है। इसलिए व्यक्ति को सदैव मधुर वचन का प्रयोग करना चाहिए। ऐसा करने से आसपास के सभी लोगों को आनंद मिलता है और इसमें उन्हें सम्मान भी मिलता है। इसलिए व्यक्ति का यह कर्तव्य होना चाहिए कि वह सदैव मधुर वचन का प्रयोग करे। यह बात भी है कि बोलने में किसी तरह का पैसा नहीं लगता है मधुर भाषा का प्रयोग करने से पीछे भी नहीं हटना चाहिए।

    Chanakya Niti: दुष्ट और हिंसक व्यक्ति के साथ रखें ऐसा व्यवहार

    कृते प्रतिकृतिं कुर्यात् हिंसेन प्रतिहिंसनम् ।

    तत्र दोषो न पतति दुष्टे दौष्ट्यं समाचरेत् ।।

    अर्थात- उपकारी के साथ सदैव उपकार का व्यवहार, हिंसक के साथ प्रतिहिंसा और दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार ही करना चाहिए। ऐसा करने में कोई दोष नहीं है।

    चाणक्य नीति के श्लोक में बताया गया है कि व्यक्ति को सदैव सामने वाले जैसा व्यवहार ही रखना चाहिए। अगर वह उपकारी है तो उसके साथ वैसा ही मधुर और उपकारी स्वभाव रखना चाहिए। अगर वह हिंसक है तो अपनी रक्षा के लिए भी प्रतिहिंसा ही करनी चाहिए और अगर वह दुष्ट है और आपका हित नहीं चाहता है तो उसके साथ भी वैसा ही व्यवहार करना चाहिए। ऐसा करने में कोई दोष नहीं लगता है। बल्कि इससे आपको सुरक्षा प्राप्त होती है।

    डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।