Chaitra Navratri 2025: चैत्र नवरात्र पर करें इन मंत्रों और चालीसा से करें पूजा, घर में होगा मां लक्ष्मी का वास
सनातन धर्म में चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri 2025) का बड़ा महत्व है। यह पर्व हर साल श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। इस दौरान मां दुर्गा की पूजा का विधान है। माना जाता है कि इस दौरान जो साधक पूजा-अर्चना करते हैं उन्हें सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वहीं इस अवधि में मां तुलसी की पूजा भी जरूर करनी चाहिए। इससे घर में बरकत बनी रहती है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। नवरात्र हिंदुओं का सबसे प्रमुख पर्व है। यह मां दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है। इस दौरान लोग मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं और कठिन व्रत का पालन करते हैं। चैत्र महीने में पड़ने की वजह से इसे चैत्र नवरात्र के नाम से जाना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल यह पर्व 30 मार्च से शुरू हो रहा है। इसलिए इस दौरान (Chaitra Navratri 2025) मां तुलसी की पूजा भी जरूर करें, क्योंकि हिंदू धर्म में मां तुलसी की पूजा का विशेष महत्व है। ऐसे में रोजाना सुबह उठें और स्नान करें। फिर मां को जल चढ़ाएं। दीपक जलाएं।
फिर तुलसी चालीसा का पाठ और उनके वैदिक मंत्रों का जाप करें। अंत में आरती करें। ऐसा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। इसके साथ ही घर मे मां लक्ष्मी का वास होता है, तो आइए यहां पढ़ते हैं।
पूजन मंत्र
- ॐ सुप्रभाय नमः।।
- नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
।।दोहा तुलसी चालीसा।।
''श्री तुलसी महारानी, करूं विनय सिरनाय।
जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय।।''
नमो नमो तुलसी महारानी, महिमा अमित न जाय बखानी।
दियो विष्णु तुमको सनमाना, जग में छायो सुयश महाना।।
विष्णुप्रिया जय जयतिभवानि, तिहूँ लोक की हो सुखखानी।
भगवत पूजा कर जो कोई, बिना तुम्हारे सफल न होई।।
जिन घर तव नहिं होय निवासा, उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा।
करे सदा जो तव नित सुमिरन, तेहिके काज होय सब पूरन।।
कातिक मास महात्म तुम्हारा, ताको जानत सब संसारा।
तव पूजन जो करैं कुंवारी, पावै सुन्दर वर सुकुमारी।।
कर जो पूजन नितप्रति नारी, सुख सम्पत्ति से होय सुखारी।
वृद्धा नारी करै जो पूजन, मिले भक्ति होवै पुलकित मन।।
श्रद्धा से पूजै जो कोई, भवनिधि से तर जावै सोई।
कथा भागवत यज्ञ करावै, तुम बिन नहीं सफलता पावै।।
छायो तब प्रताप जगभारी, ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी।
तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन, सकल काज सिधि होवै क्षण में।।
औषधि रूप आप हो माता, सब जग में तव यश विख्याता,
देव रिषी मुनि औ तपधारी, करत सदा तव जय जयकारी।।
वेद पुरानन तव यश गाया, महिमा अगम पार नहिं पाया।
नमो नमो जै जै सुखकारनि, नमो नमो जै दुखनिवारनि।।
नमो नमो सुखसम्पति देनी, नमो नमो अघ काटन छेनी।
नमो नमो भक्तन दुःख हरनी, नमो नमो दुष्टन मद छेनी।।
नमो नमो भव पार उतारनि, नमो नमो परलोक सुधारनि।
नमो नमो निज भक्त उबारनि, नमो नमो जनकाज संवारनि।।
नमो नमो जय कुमति नशावनि, नमो नमो सुख उपजावनि।
जयति जयति जय तुलसीमाई, ध्याऊँ तुमको शीश नवाई।।
निजजन जानि मोहि अपनाओ, बिगड़े कारज आप बनाओ।
करूँ विनय मैं मात तुम्हारी, पूरण आशा करहु हमारी।।
शरण चरण कर जोरि मनाऊं, निशदिन तेरे ही गुण गाऊं।
क्रहु मात यह अब मोपर दाया, निर्मल होय सकल ममकाया।।
मंगू मात यह बर दीजै, सकल मनोरथ पूर्ण कीजै।
जनूं नहिं कुछ नेम अचारा, छमहु मात अपराध हमारा।।
बरह मास करै जो पूजा, ता सम जग में और न दूजा।
प्रथमहि गंगाजल मंगवावे, फिर सुन्दर स्नान करावे।।
चन्दन अक्षत पुष्प् चढ़ावे, धूप दीप नैवेद्य लगावे।
करे आचमन गंगा जल से, ध्यान करे हृदय निर्मल से।।
पाठ करे फिर चालीसा की, अस्तुति करे मात तुलसा की।
यह विधि पूजा करे हमेशा, ताके तन नहिं रहै क्लेशा।।
करै मास कार्तिक का साधन, सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं।
है यह कथा महा सुखदाई, पढ़े सुने सो भव तर जाई।।
तुलसी मैया तुम कल्याणी, तुम्हरी महिमा सब जग जानी।
भाव ना तुझे माँ नित नित ध्यावे, गा गाकर मां तुझे रिझावे।।
यह श्रीतुलसी चालीसा पाठ करे जो कोय।
गोविन्द सो फल पावही जो मन इच्छा होय।।
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