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    Chaitra Navratri 2025: नवरात्र पर ऐसे करें मां दुर्गा की पूजा, जीवन में बनी रहेगी सुख-शांति

    चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri 2025) का त्योहार हर साल भाव के साथ मनाया जाता है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान जो साधक सपूजा-पाठ करते हैं और व्रत रखते हैं उन्हें भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। वहीं इस अवधि में किसी स्त्री का अपमान नहीं करना चाहिए।

    By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sun, 30 Mar 2025 09:08 AM (IST)
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    Chaitra Navratri 2025: नवरात्र पर करें इस स्तोत्र का पाठ।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। चैत्र नवरात्र का पर्व बहुत शुभ माना जाता है। भक्त इन दिनों देवी दुर्गा और उनके नौ रूपों की आराधना करते हैं। चैत्र नवरात्र का समापन राम नवमी के साथ होता है, जो भगवान राम के जन्म का प्रतीक है, क्योंकि चैत्र नवरात्र हिंदू कैलेंडर के पहले महीने में मनाई जाती है, इसलिए भक्त देवी दुर्गा के आशीर्वाद के साथ साल की शुरुआत करने के लिए पूजा और प्रार्थना करते हैं।

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    इस साल चैत्र नवरात्र 30 मार्च से शुरू होकर 7 अप्रैल को समाप्त होगी। कहा जाता है कि इस दौरान (Chaitra Navratri 2025) ''सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्'' का पाठ परम कल्याणकारी माना गया है, तो चलिए यहां पढ़ते हैं।

    ॥ दुर्गा सप्तशती: सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् ॥

    ।।शिव उवाच:।।

    शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ।

    येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत ॥1॥

    न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।

    न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥2॥

    कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।

    अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥3॥

    गोपनीयं प्रयत्‍‌नेनस्वयोनिरिव पार्वति ।

    मारणं मोहनं वश्यंस्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।

    पाठमात्रेण संसिद्ध्येत्कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥4॥

    ॥ अथ मन्त्रः ॥

    ॐ ऐं ह्रीं क्लींचामुण्डायै विच्चे ॥

    ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालयज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल

    ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वलहं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥

    ॥ इति मन्त्रः ॥

    नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि ।

    नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥1॥

    नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि ।

    जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे ॥2॥

    ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।

    क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ॥3॥

    चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ।

    विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ॥4॥

    धां धीं धूं धूर्जटेः पत्‍‌नी वां वीं वूं वागधीश्‍वरी ।

    क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥5॥

    हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।

    भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥6॥

    अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं ।

    धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥7॥

    पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।

    सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे ॥8॥

    इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रंमन्त्रजागर्तिहेतवे ।

    अभक्ते नैव दातव्यंगोपितं रक्ष पार्वति ॥

    यस्तु कुञ्जिकाया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।

    न तस्य जायतेसिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥

    ॥ इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।