Braj 84 kos Yatra: क्या है चौरासी कोस परिक्रमा का महत्व, कब मिलता है सबसे अधिक फल
Braj Chaurasi kos Yatra वृंदावन को ब्रज के नाम से भी जाना जाता है। ब्रज 84 कोस परिक्रमा के नाम से जानी जाने वाली यात्रा का वेदों और पुराणों में बहुत अधिक महत्व बताया गया है। यह हिंदुओं के लिए प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक माना गया है। आइए जानते हैं कि ब्रज 84 कोस परिक्रमा का क्या महत्व है।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Braj Chorasi kos Yatra: भगवान श्री कृष्ण का अधिकतम बचपन वृंदावन में ही गुजरा है। ऐसे में इस भूमि का महत्व और भी बढ़ जाता है। 84 कोस परिक्रमा लगभग 300 किलोमीटर की यात्रा होती है। यह यात्रा वृंदावन और उसके आसपास के क्षेत्रों में पवित्र स्थानों पर की जाती है।
क्या है इस यात्रा का महत्व
वृंदावन वह स्थान है जहां भगवान श्री कृष्ण ने अनेकों लीलाएं की हैं। वारह पुराण में ब्रज 84 कोस परिक्रमा के विषय में वर्णन मिलता है कि पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं। ऐसा माना जाता है जब एक बार मैया यशोदा और नंद बाबा ने चार धाम यात्रा की इच्छा प्रकट की तो भगवान श्री कृष्ण ने उनके दर्शनों के लिए सभी तीर्थों को ब्रज में ही बुला लिया था।
इस यात्रा को लेकर यह भी मान्यता है कि 84 कोस परिक्रमा करने से व्यक्ति को 84 लाख योनियों से छुटकारा मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही इस यात्रा को करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
कब-कब की जाती है यह यात्रा
चातुर्मास में इस 84 कोस की यात्रा करने का विशेष महत्व है। ज्यादातर यात्राएं चैत्र, बैसाख मास में की जाती हैं। परिक्रमा यात्रा साल में एक बार चैत्र पूर्णिमा से बैसाख पूर्णिमा तक ही निकाली जाती है। कुछ लोग आश्विन माह में विजया दशमी के पश्चात शरद काल में परिक्रमा आरम्भ करते हैं। शैव और वैष्णवों में परिक्रमा के अलग-अलग समय है।
कैसे शुरू की जाती है यह यात्रा
सबसे ज्यादा श्रद्धालु इस तीर्थयात्रा को पैदल ही करते हैं। इस यात्रा को पूरा करने में एक महीना या उससे अधिक समय लगता है। यात्रा समाप्त होने पर भक्तगण वहीं आ जाते हैं जहां से उन्होंने यात्रा की शुरुआत की थी। इस पूरी परिक्रमा में करीब 1300 के आसपास गांव पड़ते हैं। इसके साथ ही भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी 1100 सरोवर, 36 वन-उपवन, पहाड़-पर्वत पड़ते हैं।
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