महावीर के पूर्वजन्म के कर्मों के बंधन
भगवान महावीर ध्यान की गहराइयों में जा रहे थे, किंतु उनका मन बार-बार डांवाडोल हो रहा था। उन्होंने कारण जानने के लिए पिछले जन्मों को देखना आरंभ किया। ऐसा कौन-सा पाप है जो उनकी कैवल्य समाधि में बाधक बन रहा है। ये देखते-देखते वे पूर्वजन्मों में चौथे जन्म में पहुंचे।
भगवान महावीर ध्यान की गहराइयों में जा रहे थे, किंतु उनका मन बार-बार डांवाडोल हो रहा था। उन्होंने कारण जानने के लिए पिछले जन्मों को देखना आरंभ किया। ऐसा कौन-सा पाप है जो उनकी कैवल्य समाधि में बाधक बन रहा है। ये देखते-देखते वे पूर्वजन्मों में चौथे जन्म में पहुंचे। देखा कि वे एक राजा थे। एक दिन जब वे तन्मय हो वीणा बजा रहे थे, तो उनका एक दास भी एकाग्र भाव से वीणा सुनने लगा। सुनते-सुनते उसका ऐसा ध्यान लगा कि वह समाधि जैसी स्थिति में पहुंच गया।
दास उनके बिस्तरों की देखरेख करने वाला शैयापाल था। राजा को बड़ा क्रोध आया कि वीणा हम स्वांत: सुखाय बजा रहे हैं और हमारा दास आनंद ले रहा है। इसी क्रोध में राजा (महावीर के पूर्वजन्म का रूप) ने पिघला हुआ शीशा शैयापाल के कानों में डलवा दिया।
समय बीता। राजा की मृत्यु हो गई, पर यह कर्म गांठ बन गया। जन्मों की इस श्रंखला में परिपाक होते-होते वह इस स्थिति में पहुंच गया। यही पाप महावीर स्वामी के इस जन्म में उनकी समाधि में बाधक बन रहा था। तभी एक किसान अपने बैल लेकर आया और महावीर स्वामी से बोला - 'तात, मेरे बैल यहां चर रहे हैं। आप तनिक बैलों को देखें। मैं अभी आता हूं।" यह कहकर किसान चला गया। महावीर ध्यानस्थ मुद्रा में बैठे रहे।
उधर बैल चरते-चरते दूर चले गए। कुछ देर बाद किसान आया। उसने पूछा कि बैल कहां चले गए ? महावीर तो ध्यान-मुद्रा में थे, उन्होंने सुना नहीं। इससे किसान को बेहद क्रोध आया और उसने दो कीलें लेकर महावीर के दोनों कानों में घुसेड़ दीं और वहां से चला गया। कानों से रक्तधार बह निकली, किंतु महावीर यह सारा कष्ट सह लिया क्योंकि ऐसा होते ही उनकी कर्मग्रंथियां खुल गईं और वे कैवल्य को पहुंच गए।
कुछ समय बाद कुछ गांववालों ने आकर महावीर के कानों से कीलें निकालीं और पूछा - 'यह आपके साथ किसने किया?" महावीर मुस्कराए और बोले - 'कर्म-विधान ने सब किया, हित के लिए किया।" दरअसल पूर्वजन्म का शैयापाल ही इस जन्म में किसान बनकर आया था और अपना प्रतिशोध लेकर चला गया था। इसके साथ ही भगवान महावीर का वह कर्म भी नष्ट हो गया और वे समाधि को प्राप्त हो गए। इस स्तर के साधक गुरुतर से गुरुतर कष्ट को सहकर अपने पूर्वजन्म के कर्मों के बंधन काट लेते हैं।
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