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ऊर्जा: बड़ा आदमी- बड़ा होना नहीं, खरा होना मनुष्य का उद्देश्य होना चाहिए, बड़ा बन जाना सरल, किंतु बड़ा बने रहना बड़ा संघर्ष

जो बड़ा माना जाता है वह गर्व का अनुभव करता है। बड़ा बन जाना सरल है किंतु बड़ा बने रहना एक बड़ा संघर्ष है। स्पष्ट है कि बड़ा होना पल भर का छलावा है। आंतरिक शुद्धता पाना ही जीवन में ऊंचा उठना है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Thu, 05 Aug 2021 04:11 AM (IST)Updated: Thu, 05 Aug 2021 04:11 AM (IST)
ऊर्जा: बड़ा आदमी- बड़ा होना नहीं, खरा होना मनुष्य का उद्देश्य होना चाहिए, बड़ा बन जाना सरल, किंतु बड़ा बने रहना बड़ा संघर्ष
बड़ा बन जाना सरल है, किंतु बड़ा बने रहना एक बड़ा संघर्ष है।

यह एक ऐसा शब्द है जिसे हम सभी अपने बचपन से सुनते आए हैं। बड़ा आदमी बनो का आशीर्वाद बचपन में प्रिय माना जाता है। कुछ बड़े होने पर यह माता-पिता का सपना बन जाता है। उस आशीर्वाद और सपने को मनुष्य जीवन भर भारी बोझ की तरह अपने कंधों पर ढोता रहता है। उसे लगता है कि इस दौड़ में शामिल रहना चाहिए, भले ही कितना ही पीछे क्यों न हो। जिसके पास धन है वह बड़ा आदमी है। जिसके पास बल और अधिकार हैं वह बड़ा आदमी है। प्रश्न पैदा होता है कि क्या बड़ा हो जाना ही मानव जीवन की सार्थकता है? यदि किसी के पास धन, शक्ति और अन्य संबल नहीं हैं तो क्या उसे छोटा मान लिया जाना चाहिए? क्या छोटा होना अयोग्यता है? दरअसल बड़ा होना नहीं, खरा होना मनुष्य का उद्देश्य होना चाहिए। बड़ा बनने के लिए बाह्य आधार चाहिए। खरा बनने के लिए अंतर का उन्नयन चाहिए। भीतर की अशुद्धियां जितनी निकलती जाती हैं, सोना उतना ही खरा होता जाता है। शुद्धता ही सोने का मूल्य है। मनुष्य के अवगुण छूटते जाएं, गुण समाते जाएं उनसे ही उसकी श्रेष्ठता तय होती है। मोंगरे के फूल बहुत छोटे होते हैं, किंतु सिंगार उन्हीं से किया जाता है। चमेली के फूल स्वयं ही नहीं महकते, अपने आस-पास को भी सुगंध से भर देते हैं। कोई महल बहुत बड़ा और सुंदर होने से ही आदरणीय नहीं हो जाता। एक छोटे से मंदिर में यदि आराध्य की मूर्ति स्थापित हो तो शीश झुकाने वालों की कतार लग जाती है। वह मंदिर विशाल महल से भी अधिक विशालता पा लेता है।

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जो बड़ा माना जाता है, वह गर्व का अनुभव करता है। यह गर्व कब अहंकार में बदल जाता है उसे पता ही नही चलता। अहंकार आते ही बड़ा होना एक रोग बन जाता है, जो मानव जीवन को पतन की ढलान पर दाल देता है। जाहिर है बड़ा बन जाना सरल है, किंतु बड़ा बने रहना एक बड़ा संघर्ष है। स्पष्ट है कि बड़ा होना पल भर का छलावा है। आंतरिक शुद्धता पाना ही जीवन में ऊंचा उठना है।

-डाॅ. सत्येंद्र पाल सिंह


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