Bhagavad Gita: भगवत गीता के इन श्लोकों के अर्थ को करें आत्मसात, तनाव रहेगा दूर
Bhagavad Gita महाभारत की रणभूमि में अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिया गया ज्ञान सर्वश्रेष्ठ ज्ञान माना गया है। श्रीमद्भागवत गीता श्रीकृष्ण द्वारा बताई गई बहुमूल्य बातों का एक संग्रह है। आज के इस भागदौड़ वाले समय में कई लोग तनाव से पीड़ित रहते हैं। ऐसे में भगवत गीता के ये श्लोक तनाव से मुक्ति पाने में व्यक्ति की सहायता करते हैं।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Bhagavad Gita: भगवत गीता में श्रीकृष्ण सिर्फ कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। उनके मुख से निकले गीता में निहित कई श्लोक जीवन दर्शन का एहसास कराते हैं। महाभारत के युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बहुमूल्य बातें बताई थी। उनके द्वारा दिए गए यह उपदेश भगवत गीता में निहित हैं। इसमें कई श्लोक ऐसे भी हैं जो व्यक्ति की तनाव से बचने में सहायता कर सकते हैं। साथ ही गीता में निहित उपदेशों से व्यक्ति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होगा।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अर्थ - कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं, इसलिए कर्म को फल की इच्छा के लिए मत करो। कुछ लोगों की आदत होती है कि अगर वह कोई काम करते हैं तो उन्हें उसके परिणाम का बेसब्री से इंतजार रहता है। मनमुताबिक परिणाम न आने पर वह तनाव का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में यह श्लोक उनके बहुत काम आ सकता है।
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
अर्थ- विषय-वस्तुओं के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे लगाव हो जाता है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में बाधा आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है। इसलिए कोशिश करें कि किसी चीज के लगाव से दूर रहते सिर्फ कर्म में लीन रहा जाए। मनुष्य जब किसी चीज से लगाव करता है और वह उसे नहीं मिलती तो ऐसी स्थिति में वह तनाव से ग्रस्त हो जाता है।
श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥
अर्थ- श्रद्धा रखने वाले मनुष्य और अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त करते हैं। ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति को प्राप्त होते हैं। मानसिक तनाव को दूर करने के लिए यह एक अच्छा उपाय है।
चिन्तया जायते दुःखं नान्यथेहेति निश्चयी।
तया हीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गलितस्पृहः॥
अर्थ- इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि चिंता से ही दुख उत्पन्न होता है, किसी अन्य कारण से नहीं। जो व्यक्ति इस बात को समझ लेता है वह चिंता से रहित होकर सुखी, शांत और सभी इच्छाओं से मुक्त हो जाता है ।
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