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    Bhagavad Gita: भगवत गीता के अनुसार कौन हैं भगवान श्री कृष्ण के प्रिय भक्त, जानें गीता के श्लोक

    By Suman SainiEdited By: Suman Saini
    Updated: Fri, 04 Aug 2023 10:46 AM (IST)

    Bhagavad Gita गीता को हिंदू धर्म का बहुत ही पवित्र धर्मग्रंथ माना गया है। महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था जिसक ...और पढ़ें

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    Bhagavad Gita हिंदी में गीता के श्लोक

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Bhagavad Gita: श्रीमद्भागवत गीता, श्रीकृष्ण द्वारा बताई गई बहुमूल्य बातों का एक संग्रह है। भारतीय परम्परा में गीता वही स्थान रखती है जो उपनिषद् और धर्मसूत्रों का है। आज यह केवल भारत तक सीमित नहीं रह गई है बल्कि देश-विदेश में भी गीता का पाठ करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। ऐसे में भगवत गीता में निहित कुछ श्लोक आपको जीवन की कठिन-से-कठिन परिस्थिति से निकलने में सहायता करते हैं। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कुछ ऐसे लोगों के बारे में बताए है जो उन्हें बेहद प्रिय हैं। 

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    कौन हैं श्री कृष्ण के प्रिय लोग

    यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्‍क्षति।

    शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः॥

    अर्थ - भगवान श्री कृष्ण के अनुसार, वह व्यक्ति जो कभी भी ज्यादा हर्षित होता है, न किसी से द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है। जो शुभ और अशुभ कर्मों से ऊपर उठ चुका है, ऐसा भक्त श्री कृष्ण को प्रिय होता है।

    अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।

    सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः॥

    अर्थ - जो मनुष्य किसी भी प्रकार की इच्छा नहीं करता है, जो शुद्ध मन से भगवान की आराधना में लीन है, और जो सभी कर्मों भगवान को अर्पण करता है। ऐसा भक्त भी भगवान श्री कृष्ण को अति प्रिय है।

    समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः।

    शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्‍गविवर्जितः॥

    अर्थ - भगवत गीता में वर्णित इस श्लोक में श्री कृष्ण कहते हैं कि जो मनुष्य शत्रु और मित्र में, मान तथा अपमान में समान भाव से स्थित रहता है, जो सर्दी और गर्मी में, सुख तथा दुःख आदि द्वंद्वों में भी समान भाव से रखता है और जो बुरी संगति से मुक्त रहता है, वह मेरा प्रिय भक्त है।

    तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येन केनचित्‌।

    अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः॥

    अर्थ - भगवत गीता में निहित इस श्लोक का अर्थ है कि जिसकी मन सहित सभी इन्द्रियाँ शान्त हैं, जो हर प्रकार की परिस्थिति में संतुष्ट रहता है और जिसे अपने घर गृहस्थी में बहुत आसक्ति नहीं होती है ऐसा स्थिर बुद्धि वाला भक्त भी भगवान श्री कृष्ण को प्रिय है।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'