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    बटुक भैरवजी तुरंत ही प्रसन्न होने वाले दुर्गा के पुत्र हैं

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Tue, 26 May 2015 04:18 PM (IST)

    'बटुक' का अर्थ होता है छोटी उम्र का बालक। यानी आठ वर्ष से कम उम्र के बालक को 'बटुक' कहा जाता है। वर्णन मिलता है कि महर्षि दधीचि भगवान शिव के परम भक्त थे।

    'बटुक' का अर्थ होता है छोटी उम्र का बालक। यानी आठ वर्ष से कम उम्र के बालक को 'बटुक' कहा जाता है। वर्णन मिलता है कि महर्षि दधीचि भगवान शिव के परम भक्त थे।

    उन्होंने अपने पुत्र का नाम शिवदर्शन रखा लेकिन भगवान शिव नें उसका एक नाम और रखा जो था 'बटुक'। श्री बटुक भैरव जयंती 28 मई 2015 (गुरुवार) के दिन है।

    यह नाम भगवान शिव को प्रिय है। इसीलिए बटुक भैरव को भगवान शिव का बालरूप माना जाता है। इनकी वेश-भूषा शिव के समान ही है। इनको श्याम वर्ण माना गया है। इनके भी चार भुजाएं हैं, जिनमें भैरव जी ने त्रिशूल, खड़ग, खप्पर तथा नरमुंड धारण कर रखा है।

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    इनका वाहन श्वान है। इनका निवास भी भगवान भूतनाथ की तरह श्मशान ही माना गया है। भैरव भी भूत-प्रेत, योगिनियों के अधिपति हैं। इनके स्वरूप को देखकर सामान्यतय: ऐसा प्रतीत होता है कि इनका जन्म राक्षस अथवा अत्याचारियों को मारने के लिए हुआ होगा।

    परन्तु जैसा कि पहले ही बताया गया कि वास्तव में इनका अवतरण ब्रह्मदेव के कार्यों में सहयोग करने के लिए हुआ है।

    बटुक भैरवजी तुरंत ही प्रसन्न होने वाले दुर्गा के पुत्र हैं। बटुक भैरव की साधना से व्यक्ति अपने जीवन में सांसारिक बाधाओं को दूर कर सांसारिक लाभ उठा सकता है।