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    Baisakhi 2023: आज है खुशियों का त्योहार बैसाखी, जानें-क्यों और कैसे मनाया जाता है ये उत्सव ?

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Fri, 14 Apr 2023 09:09 AM (IST)

    Baisakhi 2023 सनातन शास्त्रों की मानें तो बैसाखी के दिन ही भगवान ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। अतः बैसाखी को सृष्टि का उद्गम हुआ है। आसान शब्दों में कहें तो बैसाखी के दिन से मानव जीवन की शुरुआत हुई है।

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    Baisakhi 2023: आज है खुशियों का त्योहार बैसाखी, जानें-क्यों और कैसे मनाया जाता है ये उत्सव ?

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Baisakhi 2023: खुशियों का त्योहार बैसाखी आज है। यह पर्व पंजाब, हरियाणा समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग रबी की फसल तैयार होने पर भगवान को धन्यवाद देते हैं। इस मौके पर लोग अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और करीबियों के साथ जश्न मनाते हैं और मिठाइयां बांट कर बैसाखी की शुभकामनाएं देते हैं। बैसाखी के दिन बंगाल में पोइला बोइसाख, बिहार में सत्तूआन, तमिलनाडु में पुथांडु, केरल में विशु और असम में बिहू मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार,  रबी फसल तैयार होने के बाद सबसे पहले अग्नि देव को अर्पित किया जाता है। इसके बाद तैयार अन्न को सामान्य लोग ग्रहण करते हैं। आइए, इस पर्व के बारे में सबकुछ जानते हैं-

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    बैसाखी का महत्व

    सनातन शास्त्रों की मानें तो बैसाखी के दिन ही भगवान ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। अतः बैसाखी को सृष्टि का उद्गम हुआ है। आसान शब्दों में कहें तो बैसाखी के दिन से मानव जीवन की शुरुआत हुई है। वहीं, त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम राम बैसाखी के दिन अयोध्या के राजा बने थे। उस समय अयोध्या में राम राज की स्थापना की गई थी। वर्तमान समय में भी राम राज प्रासंगिक है। महात्मा गांधी ने भी आजादी के पश्चात देश में राम राज की कल्पना की थी। जबकि, प्राचीन भारत में बैसाखी के दिन महाराजा विक्रमादित्य ने विक्रमी संवत की शुरुआत की थी। अतः बैसाखी पर्व का विशेष महत्व है।

    कैसे मनाते हैं बैसाखी ?

    इस दिन सिख समुदाय के लोग स्नान-ध्यान करने के बाद सबसे पहले अनाज की पूजा करते हैं। इसके बाद भगवान को जीवन में प्राप्त सभी चीजों के लिए धन्यवाद देते हैं। इसके पश्चात तैयार फसल को काटा जाता है। वहीं, स्वयंसेवकों द्वारा गुरुद्वारों को भव्य तरीके से सजाया जाता है। गुरुद्वारों पर कीर्तन-भजन संग गुरुवाणी का आयोजन किया जाता है। बड़ी संख्या में संख्या में लोग स्नान-ध्यान कर नवीन पोशाक पहनते हैं। बड़े वृद्ध गुरुद्वारे में जाकर मत्था टेककर बाबा से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। कई जगहों पर मेले का आयोजन किया जाता है। बच्चे और वृद्ध सभी मेला घूमने जाते हैं। लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ गिद्दा डांस कर खुशियां मनाते हैं।

    डिसक्लेमर-'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'