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    अपनी कमजोरियों को दूर कर आत्मविजेता बना जा सकता है

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Fri, 16 Dec 2016 11:48 AM (IST)

    अपनी कमजोरियों को दूर कर आत्मविजेता बना जा सकता है। इससे न सिर्फ आध्यात्मिक गुणों को आत्मसात किया जा सकता है।

    अपनी कमजोरियों को दूर कर आत्मविजेता बना जा सकता है। इससे न सिर्फ आध्यात्मिक गुणों को आत्मसात किया जा सकता है, बल्कि प्रभु से निकटता भी पाई जा सकती है। परमहंस स्वामी योगानंद का चिंतन...

    अच्छा और बुरा। हमें दोनों पहलुओं पर गौर करना चाहिए। यह देखना चाहिए कि विभिन्न चरणों में आपने अच्छे और बुरे, दोनों गुणों को किस तरह प्राप्तकिया? आगे बुरे गुणों को नष्ट करने की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए। अपने स्वभाव से दुर्गुणों को निकाल फेंकना चाहिए और आध्यात्मिक गुणों को एक-एक करके आत्मसात करना शुरू कर देना चाहिए। जैसे-जैसे बुराइयों को पहचान कर उन्हें वैज्ञानिक तरीके से उखाड़कर फेंका जाता है, वैसे-वैसे व्यक्ति स्वयं को सामथ्र्यवान या अधिकाधिक बलवान महसूस करने लगता है। अपनी कमजोरियों से कभी-भी हतोत्साहित न हों। यदि आप हतोत्साहित होते हैं, तो इसका अर्थ है कि आपने अपनी हार स्वीकार कर ली

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    है। स्वयं को इतना सुदृढ़ बना लें कि हार पर रोने की बजाय आप स्वयं का विश्लेषण कर सकें। रचनात्मक आत्मविश्लेषण की सहायता से ही व्यक्ति स्वयं को सुदृढ़ करने में सक्षम हो पाता है। जो लोग अपनी विश्लेषणात्मक बुद्धि का उपयोग नहीं करते, वे अंधे व्यक्ति के समान हैं।

    उनका सहज आत्मिक ज्ञान अज्ञानता से ढक जाता है, इसलिए ऐसे लोगों का जीवन दुखभरा होता है। ईश्वर ने हमें अज्ञानता की चादर हटाकर अपने अंतज्र्ञान को प्रकट करने की शक्ति दी है। ठीक वैसे ही, जैसे उन्होंने हमें

    अपनी पलकें खोलकर प्रकाश को देखने की शक्ति प्रदान की है। हमें यह भली-भांति समझना चाहिए कि प्राण

    की अपेक्षा मन अधिक सूक्ष्म है। जिस प्रकार शरीर की तुलना में प्राण अपने चारों ओर अधिक व्याप्त है, उसी प्रकार मन में उठने वाली चित्तवृतियां प्राण की तुलना में अधिक व्यापक हैं। इसलिए हम हमेशा अपने मन का निरीक्षण करते रहें और उसे सुंदर विचारों से परिपूरित करते रहें। प्रत्येक रात्रि सोने से पहले आत्मनिरीक्षण करें।

    ऐसे में अपनी मानसिक दैनंदिनी भी रखनी चाहिए। दिनचर्या को एक कागज पर लिखकर अपने सामने रख लें। दिन भर में यदा-कदा एक मिनट के लिए स्थिर होकर क्या कर रहे हैं, क्या सोच रहे हैं, इनका विश्लेषण करें।

    जो व्यक्ति आत्म-विश्लेषण नहीं करते, वे कभी नहीं बदलते हैं। वे न बढ़ते हैं, न घटते हैं। बस, जहां हैं वहीं अटककर रह जाते हैं। यह अस्तित्व की अत्यंत खतरनाक अवस्था है। जब आप परिस्थितियों को अपने विवेक पर हावी होने देते हैं, तब आपकी समस्त प्रगति रुक जाती है।

    ईश्वर के बारे में सब भूलकर दूसरे कामों में समय गंवाना बहुत आसान है। आप क्षुद्र बातों के बारे में ही अत्यधिक सोचते रहते हैं और ईश्वर के बारे में सोचने के लिए आपके पास कोई समय नहीं बचता। व्यस्त दिनचर्या से समय निकालकर प्रत्येक रात्रि को आत्म-विश्लेषण करने बैठें। ध्यान रखें कि आप एक ही स्थान पर अटककर

    न रह जाएं। आप इस जगत में अपने-आपको खोने नहीं, बल्कि अपने सच्चे स्वरूप को ढूंढ़ने के लिए आए हैं। ईश्वर ने आपको अपने जीवन पर विजय प्राप्त करने के लिए अपना एक सैनिक बनाकर यहां भेजा है। आप उनकी संतान हैं।

    किसी भी इंसान के लिए सबसे बड़ा पाप है अपने सर्वोच्च कत्र्तव्य को भूल जाना या उसके निर्वहन में टाल-मटोल करना। सभी के लिए सर्वोच्च कर्तव्य है अपने अहं पर विजय प्राप्त करके ईश्वर के दरबार में अपना स्थान पुन:

    ग्रहण करना। यह जान लें कि आपके पास जितनी अधिक समस्याएं होंगी, उतना ही अधिक अवसर आपको प्रभु को प्राप्त करने का मिलेगा। क्योंकि समस्याओं पर विजय पाने के क्रम में ही आप स्वयं का साक्षात्कार कर पाते हैं। इस दौरान आप आत्मविजेता बन कर उभरते हैं। जो स्वयं को जीत लेता है, वही सच्चा विजेता है। आपको

    भी ऐसा करने का प्रयास करना चाहिए। नित्य अपने अंतर में अपने-आपको जीतते रहना होगा। इस आंतरिक विजय के कारण सारेविश्व को अपनी मुट्ठी में पाएंगे। आत्मसाक्षात्कार से ही ईश्वर की निकटता पाई जा सकती है। जोशास्त्र इतने परस्पर विरोधी प्रतीत होते हैं, वे ईश्वर के महान प्रकाश में स्पष्ट हो जाते हंै। उस प्रकाश में हर बात समझ में आ जाती है और हम पहले की अपेक्षा अधिक ज्ञानी हो जाते हैं। ईश्वर का यह ज्ञान प्राप्त करना ही वह एकमात्र उद्देश्य है, जिसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को इस जगत में भेजा गया है। इस लक्ष्य के स्थान पर यदि किसी दूसरे लक्ष्य पर अपने जीवन को आपने केंद्रित कर दिया है, तो आप स्वयं को दंडित कर रहे हैं।

    अपनी आत्मा को ढूंढें़, ईश्वर को ढूंढें़। जीवन आप पर जो भी उत्तरदायित्व डालता है, उन्हें निभाने का अपनी क्षमतानुसार सर्वोत्तम प्रयास करना चाहिए। विश्लेषण और उचित कर्म द्वारा प्रत्येक बाधा को जीता जा सकता है और आत्म- जय प्राप्त की जा सकती है।

    जब-तब आपके मन में शंका रहेगी कि जीवन के साथ इस युद्ध को आप जीत सकेंगे या नहीं, तब तक आप हारते ही जाएंगे। जैसे ही आप अपने अंदर के ईश्वर के आनंद में मगन हो जाएंगे, वैसे ही आप अधिक विनम्र और कर्तव्य के प्रति अधिक सचेत हो जाएंगे।