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    Ashadha Amavasya 2025: भगवान शिव की पूजा के समय करें इन मंत्रों का जप, पितृ दोष से मिलेगी राहत

    Updated: Mon, 23 Jun 2025 02:41 PM (IST)

    धार्मिक मत है कि अमावस्या तिथि पर भगवान शिव की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही घर में खुशियों का आगमन होता है। अमावस्या के दिन दान करने से अमोघ फल की प्राप्ति होती है।

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    Aashadha Amavasya 2025: पितरों को कैसे प्रसन्न करें

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, बुधवार 25 जून को आषाढ़ अमावस्या है। इस शुभ अवसर पर पितरों का तर्पण एवं पिंडदान किया जाता है। धार्मिक मत है कि अमावस्या तिथि पर पितरों का तर्पण एवं पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं, व्यक्ति पर तीन पीढ़ी के पितरों की कृपा बरसती है। उनकी कृपा से व्यक्ति को सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। अगर आप भी अपने पितरों को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो आषाढ़ अमावस्या के दिन स्नान-ध्यान के बाद देवों के देव महादेव की पूजा करें। साथ ही पितरों का तर्पण करें। वहीं, पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।

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    शिव मंत्र (Shiv Mantra)

    1. गोत्रे अस्मतपिता (पितरों का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम
    गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

    गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम
    गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

    गोत्रे मां (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम
    गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः"

    2. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
    उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

    3. नमामिशमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद स्वरूपं।।

    4. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

    5. ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
    शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

    6. ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।
    ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि। शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।

    7. ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि।
    शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।

    8. करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं श्रावण वाणंजं वा मानसंवापराधं ।
    विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥

    9. ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।

    10. ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।

     

    पितृ निवारण स्तोत्र


    अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
    नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

    इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
    सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।

    मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।
    तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।

    नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।
    द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

    देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
    अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।

    प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।
    योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।

    नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
    स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।

    सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
    नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।

    अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
    अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।

    ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।
    जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।

    तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।
    नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।

     

    पितृ कवच

     

    कृणुष्व पाजः प्रसितिम् न पृथ्वीम् याही राजेव अमवान् इभेन।
    तृष्वीम् अनु प्रसितिम् द्रूणानो अस्ता असि विध्य रक्षसः तपिष्ठैः॥

    तव भ्रमासऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।
    तपूंष्यग्ने जुह्वा पतंगान् सन्दितो विसृज विष्व-गुल्काः॥

    प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायु-र्विशोऽ अस्या अदब्धः।
    यो ना दूरेऽ अघशंसो योऽ अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत्॥

    उदग्ने तिष्ठ प्रत्या-तनुष्व न्यमित्रान् ऽओषतात् तिग्महेते।
    यो नोऽ अरातिम् समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यत सं न शुष्कम्॥

    ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याधि अस्मत् आविः कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।
    अव स्थिरा तनुहि यातु-जूनाम् जामिम् अजामिम् प्रमृणीहि शत्रून्।

     

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