बाहु-बाहु गोबिंद सिंह, आपे गुर चेला
शमेश पिता साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी सर्ववंश दानी, संत सिपाही, महान योद्धा, सफल नेतृत्वकर्ता, सामाजिक आध्यात्मिक-राजनीतिक चिंतक, श्रेष्ठ साहित्यकार, बहुभाषी विद्वान, दया-क्षमा-प्रेम-विनम्रता परोपकार आदि उच्च मानवीय गुणों के मूर्तरूप, शरणदाता आदि सद्गुणों से विभूषित एक संपूर्ण व आदर्श व्यक्तित्व थे। इनके 'विद्या दरबार' में शामिल 52 कवियों
शमेश पिता साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी सर्ववंश दानी, संत सिपाही, महान योद्धा, सफल नेतृत्वकर्ता, सामाजिक आध्यात्मिक-राजनीतिक चिंतक, श्रेष्ठ साहित्यकार, बहुभाषी विद्वान, दया-क्षमा-प्रेम-विनम्रता परोपकार आदि उच्च मानवीय गुणों के मूर्तरूप, शरणदाता आदि सद्गुणों से विभूषित एक संपूर्ण व आदर्श व्यक्तित्व थे।
इनके 'विद्या दरबार' में शामिल 52 कवियों एवं 34 विद्वानों ने गुरु जी के इस अद्वितीय व्यक्तित्व को बड़े ही प्रामाणिक ढंग से उजागर करते हुए अपनी-अपनी काव्य रचनाओं को सफल किया है। ये दरबारी कवि स्वाभाविक रूप से गुरु जी के योद्धा रूप से ज्यादा प्रभावित थे। इन में से कुछ कवियों ने गुरु जी के गुणों को अपनी कविताओं में कुछ यूं प्रस्तुत किया- दशमेश दरबार के एक ढाडी मीर मुश्की ने अपनी एक वार में गुरु साहिब की शूरवीरता का वर्णन करते हुए कहा-
'तजयो महेश धयान कौ, न रंग भासमान कौ, परयो जु कम प्रान कौ, दसों दिसैं गजिंद जी।।
परी पुकार आन कै, चलयो सुठाठ ठान कै, सनधबध जवान कै, चढ़यो गुरु गोबिंद जी।।' दशमेश पिता गरीबों की दरिद्रता हर लेने वाले भी थे। कवि हीर बहुत निर्धन था। उसने सुना था कि गुरु जी दीनबंधु हैं और दीन-हीन का दुख-दरिद्रता मिटा देते हैं। वह अपनी किस्मत आजमाने गुरु जी के दरबार में आ पहुंचा और गुरु जी के सम्मुख खड़े हो कर एक कविता कही जिसका अर्थ था- 'वह पास खड़ा झगड़ रहा है। न दर पे झुकने देता है और न वीर गुरु गोबिंद सिंह से बात ही करने देता है। मेरा यह विकट शत्रु रात-दिन मुझे घेरे रखता है। हे मेरे दुश्मन, दारिद्रय आज तेरी मृत्यु निश्चित है तू कवि हीर को सलाम करके विदा हो जा, नहीं तो गुरु गोबिंद सिंह तेरे टुकड़े-टुकड़े कर डालेंगे।' दशमेश पिता की इस गरीब नवाजी से कवि सुदामा के लगता कि वह दीन-हीन सुदामा है और गुरु गोबिंद सिंह जी पलक झपकते ही समस्त निधियां प्रदान करने वाले भगवान कृष्ण हैं- प्रीती कर जानै गुरु गोबिंद को मानै तांतै, वही तूं गोबिंद वही बामन सुदामा मैं.' इसी प्रकार एक अन्य दरबारी कवि शारदा गुरु जी की सांसारिक व आध्यात्मिक नवाजिशें देख कर कहते हैं कि उनके हाथ की छड़ी देख कर भी प्रतीत होता है मानो वह श्री कृष्ण की बांसुरी है- 'कान्ह हवै औतरयो तो मुख ही रहति लागी, गोबिंद हवै औतरयो तो हाथ ही रहत है।' कवि चंदा को दशमेश नौ गुरु साहिबान की 'सांझी जोत' दिखते हैं- 'कलि में भयो एक मरद नानक है नाम जाको, ता ते भये नौ एक ज्योति सुहायो है। बहुर गुरु गोबिंद सिंह कलगी अवतार होइ, खड़गधारी होय महल दसवां कहायो है।' कवि सुंदर गुरु जी के विषय में लिखता है कि गुरु जी शरणागतों की सिद्धि, युद्ध के समुद्र, कुल के शिरोमणि, कामनापूर्ण करने वाले कल्प वृक्ष और क्रोध में काल-रूप हैं। गुरु जी की तेग सच्ची है, देग सच्ची है. इसी लिए आपको 'सच्चे पातशाह' कहा जाता है- 'तेग साचो, देग साचो, सूरमा सरन साचो, साचो पातिसाहु गुरु गोबिंद सिंह कहायो है।' कवि हुसैन अली को दशमेश पिता खुदा ही लगते हैं- 'दीदार-ए-खुदा गर तुमने नहीं देखा, गोबिंद को देखो वही हू-ब-हू है।' इसी प्रकार कवि कुवरेश गुरु साहिब के साहित्य प्रेम का वर्णन करते हुए कहते हैं-'गुरु गोबिंद नरिंद हैं, तेग बहादुर नंद, जिन ते जीवन है सकल, भूतलकवि बुधब्रिंद।' गुरु जी ने खालसे की सिरजना की. अमृत का दान बख्शकर चिड़ियों को बाजों से भी अधिक शक्तिशाली बना दिया.। उस पर विनम्रता की परिकाष्ठा यह कि स्वयं हाथ जोड़कर पांच प्यारों से 'अमृत' का दान मांगा। कवि गुरदास सिंह बयान करते हैं- गुरु सिमर मनाई कालका खंडे की वेला। पीओ पाहुल खंडेधार हुई जनम सुहेला। गुर संगत कीनी खालसा मनमुखी दुहेला। वाहु वाहु गोबिंद सिंह आपे गुर चेला। दशमेश पिता की शख्सियत के लौकिक एवं पारलौकिक चमत्कार को देखकर भाई नंद लाल ने लिखा-
नासिर-ओ-मनसूर गुर गोबिंद सिंघ। ईज़द-ए-मनजूर गुर गोबिंद सिंघ। हक-हक अंदेश गुर गोबिंद सिंघ। बादशाह दरवेश गुर गोबिंद सिंघ। यह साहिब-ए-कमाल श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के विलक्षण व्यक्तित्व की ही महानता है कि 'निमाणो' दरबारी कवि उस विशाल समुद्र की एक एक बूंद मात्र का चित्रण करके स्वयं और अपने काव्य को अमर बना गए।
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