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    Amarnath Yatra 2022: अमरनाथ धाम की यात्रा, जहां पहुंचते हैं श्रद्धालु शिव और शक्ति के दर्शन के लिए

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Mon, 27 Jun 2022 05:09 PM (IST)

    Amarnath Yatra 2022 भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व की जो कथा सुनाई थी उसी अमृत-तत्व को जीवन में उतारने के लिए श्रद्धालु अमरनाथ धाम की यात्रा के लिए आते हैं। 30 जून से शुरू हो रही इस यात्रा पर विशेष...

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    अमावस्या तक शिवलिंग धीरे-धीरे छोटा होता जाता है।

    अटल पीठाधीश्वर, हरिद्वार। शिव अनंत हैं और आदि शक्ति के साथ सनातन स्वरूप में हिमालय पर विराजमान हैं। समुद्र तल से 3978 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अमरेश्वर धाम को भगवान शिव आदि शक्ति देव पार्वती को ब्रह्मांड के उद्गम और अमरत्व की कथा सुनाने के लिए चुनते हैं। यही अमरेश धाम कालांतर में अमरनाथ धाम कहलाया। यहां अब भी भगवान शिव विशाल हिमलिंग के रूप में विराजित होते हैं। अनंत काल से भगवान शिव और आदिशक्ति के दर्शन के लिए श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। इस तरह अमरनाथ यात्रा हजारों वर्षों से सनातनी परंपरा को अमरत्व प्रदान कर रही है।

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    माना जाता है कि देवताओं को मृत्यु के चंगुल से बचाने के लिए भगवान शिव ने अपनी चंद्रकलाओं को निचोड़ दिया था और उससे अमृत धारा बह निकली। उससे अमरावती नामक नदी बह निकली। इस प्रकार भगवान शिव देवताओं को अमरत्व प्रदान कर गुफा में विराजमान हो गए। भगवान शिव ने देवताओं को अमरतत्व प्रदान किया था और इसीलिए वह अमरेश कहलाए। राजतरंगिणी में कल्हण ने भगवान शिव को अमरेश्वर नाम से संबोधित किया है। कालांतर में उनका यह धाम अमरनाथ के नाम से जाना जाने लगा। पुराणों के अनुसार, पवित्र गुफा में विराजमान हिमलिंग का आकार चंद्रकलाओं के साथ बढ़ता-घटता रहता है।

    बाबा अमरनाथ की तीर्थयात्रा भी हजारों वर्षों से होती रही है। ऐसा कोई कालखंड नहीं मिलता, जिसमें अमरनाथ यात्रा का वर्णन न हो। पुराणों में भी बाबा अमरनाथ का उल्लेख आया है। स्कंद पुराण में भैरव-भैरवी संवाद में अमरनाथ यात्रा के फल के बारे में बताया गया है। अमरनाथ माहात्म्य और भृंगी संहिता जैसे ग्रंथों में विस्तार से अमरनाथ गुफा की भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन है। चौथी-पांचवीं शताब्दी में रचे गए नीलमत पुराण (श्लोक 1321) में भगवान अमरनाथ का उल्लेख मिलता है। भगवान शिव का जिक्र ऋग्वेद में मिलता है। स्कंदपुराण में 'महेश्वरखंड अरुणाचल माहात्म्य खंड' में शिव के विभिन्न तीर्थों की महिमा की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि, 'अमरेश तीर्थ सब पुरुषार्थों का साधक है, वहां ओंकार महादेव और चंडिका नाम से प्रसिद्ध देवी पार्वती निवास करती हैं।'

    इस यात्रा का वर्णन करते हुए बताया गया है कि एक बार मां पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि उन्होंने नरमुंडों की माला पहननी कब शुरू की। इस पर भगवान शिव ने जवाब दिया-जब-जब तुम्हारा जन्म हुआ। मां पार्वती ने फिर पूछा-आप अमर क्यों हैं, जबकि मेरी बार-बार मृत्यु हो जाती है? भगवान शिव ने कहा कि यह एक अमर कथा की वजह से है। मां पार्वती ने उस अमर कथा को सुनने की जिद की और लंबे समय बाद भगवान शिव को मना ही लिया। यह कथा सुनाने के लिए भगवान शिव ने एक ऐसी जगह की तलाश शुरू की, जहां मां देवी पार्वती के सिवा कोई और न सुन सके। उन्हें आखिर में अमरनाथ गुफा मिल गई। जहां अनंत नामक नाग को छोड़ा, वह स्थान अनंतनाग और जहां शेष नामक नाग को छोड़ा, वह शेषनाग नाम से विख्यात है। इसी प्रकार जहां उन्होंने अपने नंदी बैल को छोड़ा, वह स्थान बैलग्राम हुआ और बैलग्राम से अपभ्रंश होकर पहलगाम बना। फिर अपना चांद चंदनवाड़ी में और बेटे गणेश को महागुणास पर्वत पर छोड़ दिया। उन्होंने पांच तत्वों (पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश) का भी त्याग कर दिया।

    अभिप्राय यह है कि जिस स्थान पर अमरेश्वर ने अमरकथा सुनाई, वह स्थान जनशून्य था। इसके बाद भगवान शिव ने पार्वती संग यहां तांडव नृत्य भी किया था। इसके बाद वह श्री अमरनाथ गुफा में पहुंचे। भगवान शिव गुफा में मृगचर्म का आसन बिछाया और उस पर समाधिलीन हो गए। गुफा में कोई जीव अमरत्व की कथा सुनने के लिए न रहे, इसके लिए भगवान शंकर ने रुद्र को पैदा किया और उसका नाम उन्होंने कालाग्नि रखा। उन्होंने रुद्र को गुफा में आग जलाने को कहा, ताकि अगर कोई जीव भीतर हो तो वह आग मे भस्म हो जाए। इसके बाद भगवान शिव ने मां पार्वती को अमर कथा सुनाना शुरू किया। इस दौरान उनके मृगचर्म आसन के नीचे कबूतर के अंडे रह गए थे जो बच गए। कहा जाता है कि इन्हीं अंडों से कबूतरों का एक जोड़ा निकला था, जो अमर कथा के प्रभाव से अमर हो गया। कई बार श्रद्धालुओं ने पवित्र गुफा में कबूतर के इस जोड़े के दर्शन होने का दावा किया है। फलस्वरूप इन नामों से ही हमें शिवसायुज्य का आभास आज तक हो रहा है। यही उस अमरकथा की अमरता का वास्तविक प्रमाण है। कश्मीर के राजवंशों का इतिहास कल्हण ने राजतरंगिणी में लिखा है। राजतरंगिणी बारहवीं शताब्दी की रचना है। राजतरंगिणी के प्रथम तरंग के 267वें श्लोक में अमरनाथ यात्रा का उल्लेख है। ग्रंथ में अन्यत्र भी कल्हण भगवान शिव के अमरनाथ स्वरूप को अमरेश्वर के नाम से संबोधित करते हैं।

    एक कथा के मुताबिक ऋषि कश्यप ने जब नदियों और जलधाराओं के जरिए कश्मीर घाटी में सतीसर झील को समाप्त किया तो उसके बाद भृंगी ऋषि उनसे मिलने आए। उन्होंने श्री अमरेश्वर गुफा की सबसे पहले तीर्थयात्रा की और अपने शिष्यों व लोगों को इसके माहात्म्य से अवगत कराया। इसका उल्लेख भृंगी संहिता में भी है। अमरनाथ की गुफा में विराजमान हिमलिंग स्वरूप में विराजमान भगवान शंकर के दर्शन के लिए तीर्थयात्री आने लगे। मार्ग में कई बार उन्हें राक्षस प्रताडि़त करते। तीर्थयात्रियों ने अपनी व्यथा ऋषि भृंगिशी को बताई। भृंगिशी ने भगवान शिव की स्तुति की। भगवान शिव ने प्रकट होकर उन्हें अपना राजदंड (छड़ी) प्रदान किया, यह छड़ी तीर्थयात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की राक्षसों से रक्षा करती है। इसी पवित्र छड़ी को कालांतर में 'छड़ी मुबारक' कहा जाने लगा।

    यहां विराजमान हैं बाबा: समुद्र तल से 3978 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पवित्र गुफा में भगवान शिव हिमलिंग के तौर पर विराजमान हैं। यह गुफा 150 फीट ऊंची और 90 फीट लंबी है। इस गुफा से पानी की बूंद टपकती है और इसी से विशाल शिवलिंग बनता है। आषाढ़ माह की पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे श्रावण माह में पवित्र शिवलिंग के दर्शन होते हैं। चंद्रमा के घटने बढऩे के साथ-साथ बर्फ से बने शिवलिंग के आकार में परिवर्तन होता है और अमावस्या तक शिवलिंग धीरे-धीरे छोटा होता जाता है।

    अमरनाथ यात्रा के मार्ग: सनातन मार्ग : अमरनाथ यात्रा का पारंपरिक मार्ग पहलगाम से है। श्रीनगर से करीब 96 किलोमीटर दूर स्थित पहलगाम आधार शिविर से चंदनबाड़ी तक वाहन से पहुंचा जा सकता है और वहां से पैदल यात्रा आरंभ होती है। इसके बाद पवित्र गुफा करीब करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर है। इस यात्रा को तीन दिन में पूरा किया जा सकता है। पिस्सू टाप, शेषनाग और पंचतरणी होते हुए श्रद्धालु भगवान अमरेश्वर के दर्शनों को पहुंचते हैं।

    नया रास्ता : बालटाल के रास्ते पवित्र गुफा तक इस रास्ते से पहुंचा जा सकता है। यह जगह अमरनाथ गुफा से महज 18 किमी. दूर है। श्रीनगर से बालटाल करीब 92 किलोमीटर है। यह रास्ता पहलगाम के मुकाबले बेहद संकरा और दुर्गम है। इस यात्रा को आसानी से एक दिन में पूरा किया जा सकता है।

    हेलीकाप्टर सेवा : श्रद्धालुओं के लिए पहली बार श्रीनगर से पंचतरणी तक हेलीकाप्टर सेवा आरंभ की गई है। इसके अलावा, बालटाल और पहलगाम बेस कैंप से भी पंचतरणी तक हेली सेवा उपलब्ध है। इससे एक दिन में श्रद्धालु यात्रा पूरी कर लौट सकते हैं। हालांकि पंचतरणी से भी करीब छह किलोमीटर पैदल यात्रा रहेगी।

    [स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती]