जाने क्या है अमरनाथ यात्रा के रास्ते में पड़ने वाली शेषनाग झील का महत्व
अमरनाथ यात्रा 27 जून बुधवार को शुरू हो चुकी है। इस दौरान अलग अलग पड़ावों से गुजरते हुए लोग पवित्र गुफा तक पहुंचते हैं। ऐसे में जाने शेषनाग झील के बारे में।
अमरनाथ यात्रा के पड़ाव
27 जून को शुरू हुई इस साल की अमरनाथ यात्रा जिसका शिव भक्तों में बड़ा महत्व है। अमरनाथ की पवित्र गुफा में भगवान शिव स्वंय भक्तों को दर्शन देते हैं। इस गुफा तक पहुंचने के पहले यात्रा कई पड़ावों से गुजरती है। मान्यता है कि अमरनाथ से पहले एक झील में शेषनाग का वास है, ये भी यात्रा का अहम् मुकाम है। इस साल दो लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने अपना पंजीकरण कराया है। 20 दिन ज्यादा चलने वाली ये पवित्र यात्रा इस बार 26 अगस्त को खत्म होगी।
यहां है शेषनाग झील
शिवभक्तों के जत्थे जय बाबा बर्फानी के का उदघोष करते हुये अमरनाथ की यात्रा के लिए रवाना होते हैं। यहां नीलकंठ बाबा शिव अमरेश्वर महादेव का स्थान है। प्राचीनकाल में इसे अमरेश्वर कहा जाता था। इस यात्रा में पग-पग पर तमाम मुश्किलें आती हैं लेकिन भोले के भक्त बड़े उत्साह से इस दुर्गम यात्रा को पूरी कर बाबा के दर्शन पाते हैं। यात्रा के दौरान आने वाली शेषनाग झील का बड़ा ही महत्व है। यह मनोरम झील पहलगाम से लगभग 32 किलोमीटर और चंदनवाड़ी से लगभग 16 किलोमीटर दूर है। यह झील सर्दियों में पूरी तरह जम जाती है। झील के चारों ओर सात पहाड़ियां हैं। कई ग्लेशियर हैं।
भगवान शिव ने शेषनाग को यहां बसाया था
लिद्दर नदी निकली नीले पानी की यही खूबसूरत झील है। 3658 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस झील का नाम शेषनाग के नाम पर रखा गया। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शिव माता पार्वती को अमरकथा सुनाने अमरनाथ गुफा ले जा रहे थे तब उन्होंने असंख्य सांपों-नागों को अनंतनाग में, नंदी को पहलगाम में, चंद्रमा को चंदनवाड़ी में छोड़ दिया था। शेषनाग को भगवान शिव ने इस झील में छोड़ा था। भगवान शिव ने शेषनाग से कहा था कि इस झील से किसी को आगे नहीं जाने देना। तब से इस झील में शेषनाग का वास है। कहा जाता है कि 24 घंटे में एक बार शेषनाग इस झील के बाहर आकर दर्शन देते हैं।
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