शाम के बाद तांत्रिक धधकती चिताओं के बीच मंत्रोच्चार करते हुए साधना शुरू करते हैं
अमूमन यहां रात में कोई आता नहीं। किसी की मृत्यु के बाद परिजन यहां अंत्येष्टि कर सांझ ढलने से पहले चले जाते हैं। मगर इन दिनों यहां अलग ही दृश्य दिखाई दे रहा है।
उज्जैन। कुंभनगरी का चक्रतीर्थ और ओखलेश्वर श्मशान। अमूमन यहां रात में कोई आता नहीं। किसी की मृत्यु के बाद परिजन यहां अंत्येष्टि कर सांझ ढलने से पहले चले जाते हैं। मगर इन दिनों यहां अलग ही दृश्य दिखाई दे रहा है। शाम होने के बाद साधक और तांत्रिक धधकती चिताओं के बीच मंत्रोच्चार करते हुए साधना शुरू कर देते हैं। सबके अलग-अलग कारण हैं। कोई कहता है कि चांडाल योग का निवारण करना है।
कोई विश्वशांति के लिए तंत्र करने की बात कहता है। तांत्रिक बताते हैं कि सिंहस्थ केवल वह नहीं जो आपको दिन के उजालों में दिखाई देता है। इस महाकुंभ का एक रूप और भी है। रात ढलते ही कई तांत्रिक और अघोरी अपने विभिन्न् उद्देश्यों को लेकर तांत्रिक साधनाओं को अंजाम दे रहे हैं। चूंकि उज्जैन में महाकाल दक्षिण की ओर मुख करके बैठे हुए हैं इस कारण से यह नगरी प्राचीन काल से ही तंत्रपीठ के रूप में जानी जाती है।
देश भर से आए तांत्रिक
सिंहस्थ के लिए देशभर से साधु-संतों के अलावा कई तांत्रिक और अघोरी भी इस समय उज्जैन में मौजूद हैं। रविवार को ओखलेश्वर श्मशान में एक अघोरी बाबा ने शव साधना की थी। लखनऊ से आए भैरव गौरवनाथ अघोरी ने ओखलेश्वर श्मशान में शव साधना को अंजाम दिया। हालांकि गौरवनाथ ने यह शव साधना जन कल्याण के लिए की थी लेकिन उज्जैन में कई लोग ऐसे भी हैं जो निजी हितों को साधने के लिए यह तंत्र साधना करवा रहे हैं।
कर रहे दुरुपयोग
जब हमने शव साधना के बारे में तांत्रिकों और अघोरियों से बात की तो कई जानकारियां सामने निकल कर आईं। पता चला कि ज्यादातर लोग इस क्रिया का दुरुपयोग कर रहे हैं। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इस तरह की तंत्र क्रियाओं का सिलसिला और बढ़ेगा। हालांकि कुछ लोग यह भी मानते हैं कि तंत्र केवल शव साध्ाना तक सीमित नहीं है, इसका स्वरूप बहुत व्यापक है और इस पर बात की जानी चाहिए।
भगवती का होता है आह्वान
भैरव गौरवनाथ अघोरी ने बताया कि शव साधना तंत्र मार्ग की सबसे जटिल साधनाओं में मानी जाती है। शव साधना में साधक शव के सामने बैठकर मां भगवती का आह्वान करते हैं। हालांकि कुछ साधक षटकर्म का प्रयोग करते हैं। भैरव अघोरीनाथ ने बताया कि हमने शव साधना इसलिए की क्योंकि इस बार सिंहस्थ गुरु-चांडाल योग में हो रहा है। सिंहस्थ सकुशल निपट जाए इसके लिए यह क्रिया की।
क्या होता है षटकर्म
तांत्रिक दावा करते हैं कि षटकर्म के जरिए साधक किसी का भी हित-अहित कर सकते हैं।
कब की जाती है शव साधना
-शव साधना तृतीया, नवमी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा की रातों में की जाती है।
-यह दो प्रकार से होती है। एक में साधक शव के ऊपर बैठकर साधना करते हैं दूसरे में चिता के सामने की जाती है।
-चिता के सामने करने वाली साधना सात्विक मानी जाती है। इसका उद्देश्य पवित्र होता है। श्मशान के देवता को इसमें मदिरा का भोग लगाया जाता है।
-दुनिया में तीन ही श्मशान ऐसे हैं, जहां पर शव साधना करने का महत्व है। तारापीठ का महाश्मशान, पश्चिम बंगाल, बनारस का मणिकर्णिका श्मशान और तीसरा उज्जैन का ओखलेश्वर
तंत्र खुद में एक सिस्टम
तंत्र विज्ञान पर लंबे समय से शोध कर रहे पंडित अमर डिब्बावाला का कहना है कि तंत्र की प्रक्रिया को, उसकी वैदिक अवस्था को जानने-समझने के लिए तंत्र की बाकायदा शिक्षा होती है। अघोर पंथ की स्थापना करने वाले खुद प्रभु शिव हैं। तंत्र खुद में एक सिस्टम है। एक ऐसा सिस्टम जो नकारात्मकता का दोष खत्म करने के लिए सकारात्मकता को उत्त्पन्न् करता है।
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