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    Adhyatma Ramayana: अध्यात्म रामायण में भगवान श्रीराम के गुणों और विचारों का किया है वर्णन

    By Kaushik SharmaEdited By: Kaushik Sharma
    Updated: Mon, 22 Jan 2024 03:46 PM (IST)

    गोस्वामी तुलसीदास जी की रामचरितमानस की आधारपीठीका में अध्यात्म रामायण ही मूल रूप से उपस्थित रही है। इसका एक प्रमुख कारण यह माना जाता है कि श्रीरामचरितमानस की कथा जितनी अध्यात्म रामायण से मिलती-जुलती है उतनी किसी और ग्रंथ से नहीं मिलती। इस ग्रंथ के दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं जिसे हम ‘कथा भाग’ और ‘उपदेश भाग’ के रूप में पाते हैं।

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    Adhyatma Ramayana: अध्यात्म रामायण में भगवान श्रीराम के गुणों और विचारों का किया है वर्णन

    यतीन्द्र मिश्र, नई दिल्ली: मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के अयोध्या के नूतन मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के मंगल अवसर पर श्रीरामकथा के महान ग्रंथ ‘अध्यात्म रामायण’ के आदरपूर्वक स्मरण का यह सबसे प्रासंगिक अवसर है। वेदव्यास की यह अमर रचना एक प्राचीन ग्रंथ है, जिसके विषय में परंपरा में बहुत विद्वानों, भाष्यकारों और रामकथा मर्मज्ञों ने विभिन्न कालखण्डों में अपनी टीकाएँ और सममितियां प्रस्तुत की हैं। मूलतः रामचरित का गुणगान करने वाले इस ग्रंथ का केन्द्रीय तत्त्व इसके विविध विषयों में वर्णित अध्यात्म के अन्वेषण की है। इस तरह यह एक धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथ होने के बाद भी दर्शनशास्त्र के निकट की कृति है, जिसमें श्रीराम के मूर्तिमान विग्रह को धर्म के शिखर पर देखते हुए इसमें आध्यात्मिक विचारों को वरीयता दी गयी है। मूलतः अद्वैत वेदान्त के धरातल पर रचा गया यह ग्रंथ , ब्रह्माण्ड पुराण के उत्तर-खण्ड के अन्तर्गत माना जाता है। मूल ग्रंथ में 4500 से श्लोकों के होने की बात कही गयी है, जिससे यह विशद संस्कृत काव्य आकार ग्रहण करता है।

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    अध्यात्म रामायण के कई प्रामाणिक पाठ सुलभ है हुए

    65 अध्यायों में विभक्त ‘अध्यात्म रामायण’ आत्म के चिन्तन और स्वविवेक के परिमार्जन की भी कथा है, जिसे साक्षात भगवान शिव अपनी पत्नी आदिशक्ति पार्वती को सुनाते हैं। बहुत सारे आध्यात्मिक और पौराणिक ग्रंथों में संवादपरक शैली में ही भगवत कथा आगे बढ़ती है, जिसमें मुख्य रूप से शिव-पार्वती संवाद ही कथानक का आधार बनता है। ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ भी ऐसा ही एक ग्रंथ है, जिसे शिव, पार्वती के प्रश्नों के उत्तर के अर्थ में प्रकट करते हैं। अध्यात्म रामायण के समय-समय पर कई प्रामाणिक पाठ सुलभ हुए, जिनमें श्री वेंकटेश्वर प्रेस, गीता प्रेस और चौखम्भा प्रेस का विशेष योगदान है। प्रस्तुत पाठ वेंकटेश्वर प्रेस द्वारा प्रकाशित पण्डित बल्देव प्रसाद मिश्र और रामेश्वर भट्ट के अनुवादों के सहयोग से की गयी गीता प्रेस की टीका है, जिसे मुनिलाल गुप्त ने संभव किया है।

    रामचरितमानस की कथा अध्यात्म रामायण से मिलती-जुलती है

    ऐसी मान्यता है कि गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस की आधारपीठीका में अध्यात्म रामायण ही मूल रूप से उपस्थित रही है। इसका एक प्रमुख कारण यह माना जाता है कि श्रीरामचरितमानस की कथा जितनी अध्यात्म रामायण से मिलती-जुलती है, उतनी किसी और ग्रंथ से नहीं मिलती। इस ग्रंथ के दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं, जिसे हम ‘कथा भाग’ और ‘उपदेश भाग’ के रूप में पाते हैं। अध्यात्म रामायण राम के प्रत्येक मानवीय या सांसारिक कृत्य को आध्यात्मिक या पराभौतिक स्तर पर परखती है। प्रतीकात्मक अर्थ में यह हर एक भक्त, भावक, सहृदय या व्यक्ति की वह आंतरिक यात्रा है, जिसमें नैतिक कार्यों और कर्त्तव्यों के प्रति हृदय को विशाल परिसर बनाकर देखने और उसमें कुछ दैवीय गुणों को समाहित करने की युक्ति प्रतिपादित हुई है। यह सगुण और निर्गुण के बीच भी सामंजस्य का ग्रंथ है, जिसमें राम एक निखरे हुए आदर्शोन्मुख आत्म के रूप में परिलक्षित होते हैं।

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    श्रीराम के रामत्त्व की प्रतिष्ठा अन्य ग्रंथों में भी हुई है संभव

    यह देखना विस्मयकारी है कि अद्वैत वेदांत के ढेरों भाष्यकारों ने अध्यात्म रामायण को अपने विचारों का एक बड़ा स्रोत मानते हुए श्रीराम के औदात्य और पराक्रम का विशद वर्णन किया है। अध्यात्म रामायण के छाया सीता का तुलसीदास ने भी उपयोग किया है। राम की मर्यादा, उनके दैवीय गुणों, उनमें देवत्त्व की आभा और एक अध्यात्मिक नायक के रूप में देखने की कल्पना इस ग्रंथ का ऐसा बीज-संदेश है, जिसके आधार पर कालान्तर में श्रीराम के रामत्त्व की प्रतिष्ठा अन्य ग्रंथों में भी संभव हुई।

    वेदव्यास जी ने राम के अपरिमित गुणों का किया बखान

    स्वयं वेदव्यास, श्रीमद्भागवत महापुराण में राम के अपरिमित गुणों का बखान करते हैं, जो अपनी व्याख्या में करुणा और श्रेष्ठता के स्तर पर असीम है। इस ग्रंथ के श्लोकों सुभाषितों की सुहास भरी हुई है, जो संस्कृत काव्य में सम्मान से देखी जाती है। रामकथा का माहात्म्य बताते हुए इस ग्रंथ का आरंभ ही अद्भुत है- ‘रामं विश्वमयं वन्दे रामं वन्दे रघूद्वहम्। रामं विप्रवरं वन्दे रामं श्यामाग्रजं भजे।।’

    अयोध्या काण्ड में श्रीराम का जानकी को समझाना कि वनवास में किस प्रकार के दारुण कष्ट और जंगली पशु-पक्षियों की रहवारी है, सीता का वन जाना उचित नहीं। राम और सीता के इस लंबे संवाद को अध्यात्म रामायण में काव्यजनोचित न्याय मिला है, जिसे पढ़ना किसी शोक और करुणा से भरे नाटक को देखने जैसा है। तर्क और अनुनय-विनय के साथ रचा गया यह लंबा संवाद सीता के प्रत्युत्तरों से राम को इस बात के लिए विवश कर देता है कि वे अपनी प्रेयसी के साथ वन-गमन करें।

    रामकथा के मार्मिक प्रसंग मूल संस्कृत ग्रंथों में मौजूद है

    इन प्राचीन ग्रंथों को पढ़कर ऐसा लगता है कि रामकथा के इतने पाठ और इतने मार्मिक प्रसंग मूल संस्कृत ग्रंथों में मौजूद रहे हैं कि उनकी लोकप्रियता बहुत बाद तक भारतीय परंपरा में व्याप्त रही होगी, जिनके कारण हिन्दी, अवधी, ब्रज, मागधी, बैसवाणी, राजस्थानी तथा अन्यान्य क्षेत्रीय बोलियों में राम और सीता के वन-गमन, पंचवटी में निवास और सीताहरण प्रसंग आदि के मार्मिक गीत गाये जाते रहे। इन्हीं श्लोकों को पढ़ते हुए आश्चर्य होता है कि उनके मूल भाव को दर्शाता हुआ कोई गीत अवधी के पास मौजूद है, तो कई दूसरी बोलियों के गीतों में मूल संस्कृत में रामकथा विद्यमान नजर आती है। भारतीय परंपरा में राम के अनुसंधान और अनुकरण के लिए एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसका महत्त्व कालातीत है।

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