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    मां उग्रतारा मंदिर

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    Updated: Tue, 16 Oct 2012 03:17 PM (IST)

    झारखंड के लातेहार जिलांतर्गत चंदवा प्रख्ंाड मुख्यालय से मात्र दस किमी दूर रांची-चतरा मुख्य मार्ग पर स्थित मां उग्रतारा नगर मंदिर हजारों वर्ष पुराना है। शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध इस मंदिर में देवियों की मूर्तियां हैं।

    रांची। झारखंड के लातेहार जिलांतर्गत चंदवा प्रख्ाड मुख्यालय से मात्र दस किमी दूर रांची-चतरा मुख्य मार्ग पर स्थित मां उग्रतारा नगर मंदिर हजारों वर्ष पुराना है। शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध इस मंदिर में देवियों की मूर्तियां हैं। चकला गांव में निवास करने वाले सभी जाति के लोगों की इस मंदिर से आस्था जुड़ी हुई है। यहां भोजन और रात्रि विश्राम की अच्छी व्यवस्था है। पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, दिल्ली, राजस्थान, छतीसगढ़, चेन्नई इत्यादि राज्यों से श्रद्धालु पूजा अर्चना के लिए सालों भर यहां आते रहते है। मां उग्रतारा नगर मंदिर का संचालन चकला शाही और मिश्र परिवार संयुक्त रूप से करते हैं। विशेष रूप से यहां रामनवमी तथा दुर्गापूजा का आयोजन धूमधाम से होता है। इस मंदिर में हर माह की पूर्णिमा को अपार भीड़ होती है। दुर्गापूजा के दिन तो हजारों श्रद्धालु यहां आते है। श्रद्धालुओं का मानना है कि जो यहां सच्चे दिल से पूजा-अर्चना करता है, उसकी मन्नतें अवश्य पूरी होती हैं। मां उग्रतारा नगर मंदिर शक्तिपीठ के रूप में पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध है।

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    पूजा की परंपरा-

    यहां मंदिर के पुजारी गर्भ गृह में जाकर श्रद्धालुओं के प्रसाद का भगवती को भोग लगाकर देते हैं। श्रद्धालुओं को अंदर प्रवेश की मनाही होती है। यहां प्रसाद के रूप में मुख्य रूप से नारियल और मिसरी चढ़ाई जाती है। मोहनभोग भी चढ़ाया जाता है, जिसे मंदिर का रसोइया ही बनाता है। दोपहर में पुजारी भगवती को उठाकर रसोई में ले आते हैं। वहां भात, दाल और सब्जी का भोग लगता है, जिसे पुजारी स्वयं बनाते हैं। मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं द्वारा बकरे की भी बलि दी जाती है। मंदिर में दो बार विधिवत आरती की जाती है। मंदिर के पश्चिमी भाग में स्थित मादागिर पर्वत पर मदार साहब का मजार है। बताया जाता है कि मदार साहब मां उग्रतारा के बहुत बड़े भक्त थे। तीन वर्षो में एक बार इनकी भी पूजा होती है और काड़ा की बलि दी जाती है। बाद में उसी खाल से मां उग्रतारा मंदिर के लिए नगाड़ा बनाया जाता है। इसी नगाड़े को बजाकर मंदिर में आरती की जाती है। बताया जाता है कि जब कोई भक्त मन्नत मांगता है और उसकी मन्नत पूरी हो जाती है तो मंदिर परिसर में पांच झंडे गाड़े जाते है। एक सफेद झंडा मदार साहब की मजार पर भी गाड़ा जाता है।

    रहस्यों से भरा है पूरा क्षेत्र

    मां भगवती के दक्षिणी और पश्चिमी कोने पर स्थित चुटुबाग नामक पर्वत पर मां भ्रामरी देवी की गुफाएं हैं, जहां कई स्थानों पर बूंद-बूंद पानी टपकता रहता है। करीब सत्तर फीट नीचे सतयुगी केले का वृक्ष है, जो वषरें पुराना होने के बावजूद आज भी हराभरा है। इसमें फल भी लगता है। वहां मौजूद एक पत्थर के छिद्र से तीव्र गति से पानी हमेशा निकलता रहता है, मगर यह पानी सिर्फ केले के वृक्षों को ही प्राप्त होता है। शेष सभी स्थान सूखे रहते हैं। इस मंदिर में हजारों वर्ष पूर्व चकला स्टेट के राजा द्वारा मिटटी की चारदीवारी कराई गई थी। जिसमें सात दरवाजे हैं। पहाड़ों और इस मंदिर के उत्तरी भाग में एक धर्मशाला भी है। मंदिर परिसर में दो हैंडपंप व दो कुएं हैं।

    आज भी जीवंत है परंपरा- मां उग्रतारा नगर मंदिर में राज दरबार की व्यवस्था आज भी कायम है। यहां पुजारी के रूप में मिश्रा और पाठक परिवार के अलावा बकरे की बलि देने के लिए पुरुषोत्तम पाहन, नगाड़ा बजाने के लिए नटवा घांसी, काड़ा की बलि देने के लिए प्रसाद नायक, सोरठ नायक, दूध लाने लिए चंदू नायक, भोग बनाने के लिए जयमंगल राम, टाटी लाने के लिए बुधन तुरी नियुक्त हैं।

    पहुंचने का मार्ग-

    -चंदवा तक रेलमार्ग या सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है।

    -फिर चंदवा से मंदिर तक बस या निजी वाहनों द्वारा जाया जा सकता है।

    -मंदिर 12:30 बजे बंद हो जाता है। -पुन: 4:30 में मंदिर का पट खुलता है और शाम की आरती के बाद बंद हो जाता है।

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