जिएं भ्रमर की तरह
भ्रमर के जीवन के लिए पराग आवश्यक है, लेकिन उसकी प्राप्ति के लिए वह फूल को कष्ट नहींपहुंचाता..
भ्रमण करना भ्रमर का जीवन है, इसीलिए उसका नाम भ्रमर पड़ा। वह पुष्पों के परागकणों की खोज में किसी एक स्थान पर टिक कर नहीं रहता। वह फूलों का शोषण नहीं करता, क्योंकि वह आसक्ति से मुक्त है। पराग उसका जीवन है, लेकिन उससे भी उसकी कोई असक्ति नहीं। उसेकिसी फूल या उपवन से भी आसक्ति नहीं।
भ्रमर पुष्प के पास जाता है, बिना उसे किसी प्रकार का कष्ट दिए। रस मिला तो पी लिया, न मिला तो कोई गिला-शिकवा नहीं। न मिलने का असंतोष व्यक्त नहीं करता। न पुष्प को प्रताडि़त करता है, न उसे नष्ट करने का प्रयास करता है। वह दूसरी वाटिका में चला जाता है, वाटिका को उजाड़ता नहीं।
संसार रूपी उपवन में यदि मनुष्य भ्रमर की जीवन-शैली अपना ले, तो अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है। क्योंकि आज लोग भोग-विलास की जिंदगी बिताने के लिए अनैतिक व अमानवीय हो रहे हैं। स्वार्थ के लिए वृक्षों को काटते हैं, स्वाद के लिए पशुओं को मारते हैं। भौतिक सुखों के लिए अनीति के द्वारा संग्रह करते हैं।
अहिंसा के त्रिगुणात्मक रूप हैं- वर्तमान में जीना, सहजता में जीना और अनासक्त होकर जीना। ये तीनों गुण भ्रमर में हैं। इन तीनों गुणों को न अपनाने से ही आज कमाने की होड़, तमाम तरह की चिंताएं, तकलीफें और हिंसा जैसी दुष्प्रवृत्तियां सामने आ रही हैं। हमें समझना चाहिए कि वनस्पति, जल, पृथ्वी, अग्नि और प्राणियों के संतुलन से ही यह संसार है। इसे नष्ट करने का अधिकार किसी को नहीं है।
आज यदि हम भ्रमर की जीवन-शैली का अनुसरण करें, तो नैतिक मूल्यों और मानवता को नष्ट होने से बचाया जा सकता है।
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