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    भक्त और भगवान के बीच भाव का अंतर

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    Updated: Fri, 04 May 2012 03:22 PM (IST)

    धरा पर जब-जब असुरों का अत्याचार बढ़ा है तब-तब ईश्वर ने किसी न किसी रूप में आकर उनका संहार कर लोगों को उनके अत्याचार से मुक्ति दिलाई है।

    टूंडला। धरा पर जब-जब असुरों का अत्याचार बढ़ा है तब-तब ईश्वर ने किसी न किसी रूप में आकर उनका संहार कर लोगों को उनके अत्याचार से मुक्ति दिलाई है।

    यह उद्गार गांव मौहम्मदाबाद में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन आचार्य समर चेतन्य शास्त्री ने व्यक्त किये। कथा व्यास ने कहा कि भक्त और भगवान के बीच में मात्र भाव का अंतर है, जहां ईश्वर के प्रति भाव है वहीं साक्षात ईश्वर है। ईश्वर एक है किंतु उसके स्वरूप भिन्न हैं। पृथ्वी पर जब-जब असुरों का अत्याचार बढ़ा है तब-तब ईश्वर ने पृथ्वी वासियों के मान सम्मान को बचाने के लिए उनका संहार किया है। भगवान विष्णु ने कभी राम तो कभी कृष्ण बनकर तो कभी नरसिंह का रूप धरकर असुरों का संहार करके पृथ्वी को भयमुक्त किया है।

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    आचार्य ने श्रीकृष्ण जन्म की कथा का बढ़ा ही मार्मिक वर्णन किया। कृष्ण जन्म की कथा सुन श्रोता खुशी में झूम उठे। वहीं महिलाएं भजनों पर थिरकने लगी। कथा में निकाली गई श्रीकृष्ण जन्म की झांकी को देखने के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा। भागवत कथा में गिर्राज, दयाल बाबू, प्रदीप, राजू, वीरपाल, रमेश ठेकेदार, कालीचरन, आनन्द, सरमन भगत, भगवान स्वरूप, भजन लाल, साहब सिंह, रामब्रेश, प्रेमलता देवी, शिवधृष्टि, चरन सिंह, शकुंतला, राजनश्री, सुखवीर, कल्पना, आरती, पूनम आदि श्रद्धालु उपस्थित थे।

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