आदि शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा
आदि शक्ति स्वरूपा मां भगवती ब्रहृमा, विष्णु और महेश सृष्टि का सृजन एवं अनुपालन, इन्हीं आदिशक्ति स्वरूपा मां भगवती की सहायता से करते हैं। सकाम भक्त इनके सेवन से मनोभिलाषित सराहनीय स्थिति प्राप्त कर लेते हें।
आदि शक्ति स्वरूपा मां भगवती ब्रहृमा, विष्णु और महेश सृष्टि का सृजन एवं अनुपालन, इन्हीं आदिशक्ति स्वरूपा मां भगवती की सहायता से करते हैं। सकाम भक्त इनके सेवन से मनोभिलाषित सराहनीय स्थिति प्राप्त कर लेते हें। निष्काम भक्त परम दुर्लभ मोक्ष को पाकर हितार्थ होते हैं। ब्रहृमा के साथ महासरस्वती, विष्णु के साथ महालक्ष्मी और रूद्र के साथ महाकाली का नाम शक्ति रूप में जुड़ा है। मूल रूप से इन तीनों शक्तियों का एक ही शक्ति सृजित ब्रहृमांड कहकर जिसकी ओर संकेत किया गया है। वह देवी दुर्गा ही है। यह देवी ऋग्वेद में अपना परिचय इन शब्दों में देती है। मैं समस्त जगत की ईश्वरी हूं। मैं ही धनदात्री हूं। उपास्य तत्वों में मैं ही श्रेष्ठ हूं। मैं ही एक मात्र उपास्य हूं। मैं ही संपूर्ण जगत में हूं। मुझे तुम सर्वरूप में देखते हो। मगर पहचान नहीं रहे हो। शक्ति पीठों के उद्भव एवं महात्मय की श्रृंखला में हिमाचल प्रदेश जिला कांगड़ा में कलीधर पर्वत की सुरम्य तलहटी में ज्वालामुखी शक्तिपीठ है। शिव पुराण तथा देवी भागवत के अनुसार इसी को देवी का ज्वाला रूप माना गया है। यहां की शक्ति सिद्धक्ष और भैरव उन्मत्त है। ज्वालामुखी शक्तिपीठ विश्व में पहला ऐसा पीठ है, जहां आदि शक्ति जगजननी किसी मूर्ति रूप में न हो कर, साक्षात ज्योति के रूप में विद्यमान है। इस मंदिर में नवदुर्गा के रूप में नौ ज्योतियां आदि काल से निरंतर प्र”वलित हो रही है। इसका इतिहास सोलहवीं शताब्दी के मुगल साम्राज्य से भी जुड़ा हुआ है। इस शक्तिपीठ में मुगल सम्राट अकबर का अभिमान चूर-चूर हो गया था। नंगे-नंगे पैरी मां अकबर आया, तवा फाड़ कर निकली ज्वाला अकबर शीश नवाया। सोलहवीं शताब्दी से आज तक मां की गाथाएं लोकगीतों के रूप में गाई जाती हैं। मान्यता के अनुसार इस शक्ति पीठ के दर्शन करने से वृहस्पति ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होती हैं। मां सर्वत्र विजय भव का आशीर्वाद देकर श्रद्धालुओं को कृतार्थ करती है।
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