लाभकारी है साष्टांग प्रणाम
सनातन धर्म में साष्टांग प्रणाम महान संस्कृति है। साष्टांग प्रणाम स्वयं कर्ता को लाभ पहुंचाता है, न कि उन्हें जिन्हें वह प्रणाम करता है। साष्टांग प्रणाम करते समय रक्त का प्रवाह मस्तिष्क की ओर होता है। इससे बुद्धि अधिक तीक्ष्ण होती है। इसके अतिरिक्त यह विनम्रता का सूचक है, जो मानव का एक बड़ा गुण है। इन शब्दों के साथ जीवन में साष्टांग प्रणाम के महत्व को रेखांकित कर रहे थे दक्षिण भारत के प्रख्यात संत स्वामी भूमानंद तीर्थ महाराज।
जमशेदपुर, जागरण संवाददाता। सनातन धर्म में साष्टांग प्रणाम महान संस्कृति है। साष्टांग प्रणाम स्वयं कर्ता को लाभ पहुंचाता है, न कि उन्हें जिन्हें वह प्रणाम करता है। साष्टांग प्रणाम करते समय रक्त का प्रवाह मस्तिष्क की ओर होता है। इससे बुद्धि अधिक तीक्ष्ण होती है। इसके अतिरिक्त यह विनम्रता का सूचक है, जो मानव का एक बड़ा गुण है। इन शब्दों के साथ जीवन में साष्टांग प्रणाम के महत्व को रेखांकित कर रहे थे दक्षिण भारत के प्रख्यात संत स्वामी भूमानंद तीर्थ महाराज। कदमा-सोनारी लिंक रोड स्थित केजर बंगला के प्रज्ञान धाम में स्वामी जी ने अपने प्रात:कालीन प्रवचन में शहर के प्रबुद्ध जिज्ञासुओं को संबोधित करते स्वामी भूमानंद तीर्थ विशिष्ट व्यवहार के लिए आत्मीय वैभव का उपयोग विषय पर बोल रहे थे। स्वामी जी ने कहा- आजकल गुड मार्निग या गुड इवनिंग कह कर अभिवादन किया जाता है, जो दोषपूर्ण है। आप जिसका अभिवादन कर रहे, हो सकता है कि उसका प्रात:काल गुड मार्निग न हो। गुरु की योग्याताओं की चर्चा करते हुए स्वामी जी ने बताया कि गुरु शास्त्रज्ञ, निष्पाप, कामनाओं से शून्य हों। वे ब्राह्मणों में श्रेष्ठ, शांत, अकारण दया करने वाले और सज्जनों के बंधु हों। ऐसे गुरु के पास विनम्रतापूर्वक निष्कपट एवं सरल भाव से जाकर प्रणाम करें।
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