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    ब्रह्मा और शक्ति से सारा ब्रह्मांड परिपूर्ण है

    By Edited By:
    Updated: Thu, 06 Dec 2012 11:10 AM (IST)

    ब्रह्मा और शक्ति से सारा ब्रह्मांड परिपूर्ण है। सत्ता, शिव, ब्रह्मा व उनकी आधारभूत शक्ति सबमें समाहित है। सत्ता की शक्ति सबमें व्याप्त होकर किसी न किस ...और पढ़ें

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    ब्रह्मा और शक्ति से सारा ब्रह्मांड परिपूर्ण है। सत्ता, शिव, ब्रह्मा व उनकी आधारभूत शक्ति सबमें समाहित है। सत्ता की शक्ति सबमें व्याप्त होकर किसी न किसी रूप में क्रियाशील रहती है। उसकी शक्ति देवता दानव, गंधर्व, मनुष्य तथा अन्यान्य जीवों में न्यूनाधिक अंश में समायी रहती है, जिससे सभी चैतन्य होकर अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार कार्य करते रहते हैं। दैत्यों और देवताओं में भी उसी ब्रह्मांड का अंश रहता है परंतु उनकी क्रियाएं एक दूसरे से भिन्न होती हैं। एक छीनने झपटने में विश्वास रखता है तो दूसरा शांति संतोष व कुछ देने में विश्वास रखता है। मनुष्यों में दोनों प्रकार की प्रवृत्तियां विद्यमान रहती हैं। किसी किसी में देवताओं जैसे आचरण दिखते हैं तो किसी में दैत्यों जैसे। सत्ता एक होते हुए भी सबमें एक ही प्रकार की क्रियाएं क्यों नहीं होती? सब एक जैसा आचरण क्यों नहीं करते? वह इसलिए कि यह सारा ब्रंांड भगवान की रचना है।

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    परमात्मा की प्रत्येक रचना भिन्न-भिन्न प्रकार से रचित है। अपनी लीला को दर्शाने के लिए उसने इस संसार को रच दिया, सारी प्रकृति को निर्मित कर दी। समस्त जड़ पदार्थो को अस्तित्व में लाने के लिए सूक्ष्म आकाश से भौतिक जड़ जगत को बना डाला तथा उस जड़ को चैतन्य जैसा भासित कराने के लिए उनके भीतर स्वयं को प्रवृष्ट करा दिया। ब्रह्मा ने जड़ को चेतन के रूप में क्रियाशील करने के लिए अपनी शक्ति से परिपूर्ण कर दिया। तभी यह सारा जगत भौतिकता से विमोहित होता हुआ अपनी प्रकृति के अनुसार जगत के कार्यो में प्रवृत्त होता रहता है, परंतु जब जीव इस मोहपाश से छूटना चाहता है तब भगवान की शरणागति प्राप्त कर उनकी भक्ति से परिपूर्ण होते हुए इस जगत से पार होकर नित्य, सत्यस्वरूप परमात्मा को प्राप्त कर पाता है। पूर्ण चैतन्य स्वरूप परमात्मा का साक्षात्कार प्राप्त कर वह अपने मूल स्वरूप में अवस्थित होकर प्राकृतिक चक्त्र के बंधन से मुक्त होकर सदैव-सदैव के लिए आनंदित हो जाता है।

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