Narasimha Dwadashi 2019: हिरण्यकश्यप का वध कर प्रहलाद की रक्षा करने वाले नरसिंह अवतार की करें पूजा
भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को सर्मपित है नरसिंह द्वादशी जो इस वर्ष 18 मार्च सोमवार को मनार्इ जायेगी।
कब होती है नरसिंह द्वादशी
शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को नृसिंह द्वादशी मनाई जाती है। इस वर्ष ये पर्व 18 मार्च 2019 को पड़ रहा है। इस दिन का जिक्र वेदों आैर पुराणों में भी आता है। भगवान विष्णु के बारह अवतार में से एक अवतार नरसिंह का माना जाता है। इस अवतार का आधा शरीर मनुष्य का आैर आधा शेर का है। इसी रूप को धारण करके विष्णु जी ने दैत्यों के राजा हिरण्यकशिप का वध किया था। उसी दिन से इस पर्व् का आरंभ माना जाता है। भगवान विष्णु के इस स्वरूप ने प्रहलाद को भी वरदान दिया कि, जो कोई इस दिन नरसिंह का स्मरण करते हुए शुद्घ मन से उनका व्रत आैर पूजन करेगा उसकी समस्त मनोकामनायें पूर्ण होंगी।
जानें पूजन विधि
इस दिन भगवान विष्णु के अवतार माने जाने नरसिंह स्वरूप की पूजा की जाती है। नरसिंह द्वादशी के दिन प्रातः काल उठकर स्नान आदि से शुद्घ होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें उसके बाद विधि-विधान से पूजा करें। पूजा में भगवान को फल, फूल, धूप, दीप, अगरबत्ती, पंचमेवा, कुमकुम, केसर, नारियल, अक्षत आैर पीतांबर अर्पित करें। इसके पश्चात भगवान नरसिंह को प्रसन्न करने के लिए नीचे दिए मन्त्र का जाप करें -
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥
मान्यता है कि इस मंत्र के जाप से समस्त प्रकार के दुखो का निवारण होता है। साथ ही भगवान नरसिंह प्रहलाद के समान अपने सभी भक्तो की रक्षा करने का वरदान देते हैं। पूजा के बाद भक्त प्रहलाद आैर नरसिंह की कथा का पाठ या श्रवण भी करें।
ये है नरसिंह आैर प्रहलाद की कथा
धार्मिक ग्रंथो में वर्णित कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक कश्यप नाम के ऋषि थे। उनकी पत्नी का नाम दिति था आैर उनकी दो पुत्र थे, पहला हरिण्याक्ष आैर दूसरा हिरण्यकशिप। ये दोनों ही ऋषि पुत्र होने बाद भी असुर प्रवृति के हो गये। इसी के कारण भगवान विष्णु ने वाराह रूप में पृथ्वी की रक्षा हेतु हरिण्याक्ष का वध कर। अपने भाई की मृत्यु से दुखी आैर क्रोधित होकर हिरण्यकशिप ने उसका प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प लिया, जिसके लिए उसने ब्रह्मा जी को कठोर तप से प्रसन्न किया आैर मनचाहा वरदान प्राप्त कर लिया। इसके बाद उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर देवों को पराजित किया आैर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। अजेय होने के कारण वो तीनों लोको का स्वामी बन गया आैर उसे अपनी शक्ति पर अत्यधिक अहंकार हो गया। उसके अत्याचार बढ़ने लगे। इसी बीच उसकी पत्नी कयाधु ने प्रहलाद नाम के पुत्र को जन्म दिया जो अपने पिता के विपरीत भगवान का भक्त आैर साधु प्रवृति का था। युवा होने पर वो अपने पिता के गलत कार्यों का विरोध करने लगा आैर भगवान विष्णु का परम भक्त हो गया। भगवान की भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने के लिए हिरण्यकशिप ने बहुत प्रयास किया पर सफल नहीं हो सका। तब उसने अपने पुत्र की हत्या करने प्रयास किया, जिसके लिए उसे पर्वत से धकेला, आैर होलिका में उसका दहन किया। इसके बावजूद हर बार विष्णु जी की कृपा से भक्त प्रहलाद बच जाते थे। भगवान की इस अदभुद कृपा से अभिभूत हो कर हिरण्यकश्यप की प्रजा भी प्रभु की भक्त हो कर उनकी पूजा करने लगी। जिस पर हिरण्यकशिप का क्रोध में स्वयं भरी सभा में उसे मृत्यु दंड देने का निर्णय कर के राज दरबार में खंभे से बांध कर कहा कि तू कहता है कि कण कण में भगवान हैं तो बुला कि वो खंभे से निकल कर तेरी रक्षा करें आैर खंभे पर अपनी गदा से प्रहार किया। उसी समय नरसिंह प्रकट हो गए आैर हिरण्यकशिप को अपने जांघो पर रख उसकी छाती को नाखूनों से फाड़ कर मृत्यु दंड दिया।