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    Jivitputrika Vrat Katha: कौन था जीमूतवाहन? जिसके नाम पर पड़ा है जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया

    By Kartikey TiwariEdited By:
    Updated: Thu, 10 Sep 2020 02:44 PM (IST)

    Jivitputrika Vrat Katha जीमूतवाहन के नाम पर ही जीवित्पुत्रिका व्रत का नाम पड़ा है। आइए जानते हैं कि जीमूतवाहन कौन हैं और उनकी कथा क्या है।

    Jivitputrika Vrat Katha: कौन था जीमूतवाहन? जिसके नाम पर पड़ा है जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया

    Jivitputrika Vrat Katha: पुत्र की रक्षा के लिए किया जाने वाला व्रत जीवित्पुत्रिका या जितिया आज है। आज के दिन माताएं अपनी संतान की रक्षा और कुशलता के लिए निर्जला व्रत करती हैं। जीमूतवाहन के नाम पर ही जीवित्पुत्रिका व्रत का नाम पड़ा है। आइए जानते हैं कि जीमूतवाहन कौन हैं और उनकी कथा क्या है।

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    जीवित्पुत्रिका व्रत कथा

    जीमूतवाहन एक गंधर्व राजकुमार थे, जो बेहद उदार और परोपकारी इंसान थे। उनके पिता ने राजपाट छोड़ दिया और वन में चले गए, जिसके बाद जीमूतवाहन को राजा बना दिया गया। वे राजकाज ठीक से चला रहे थे लेकिन उनका मन उसमें नहीं लगता था। एक दिन वे राजपाट भाइयों को सौंपकर अपने पिता के पास ही वन में चल दिए। वहां उनका विवाह मलयवती नामक ​कन्या से हुआ।

    एक रोज वन में वे एक वृद्धा से मिले। उसका संबंध नागवंश था। वह काफी डरी और सहमी थी। रो रही थी। जीमूतवाहन की नजर उस पर पड़ी, तो उनसे रहा नहीं गया और उससे रोने का कारण पूछा। उसने बताया कि पक्षीराज गरुड़ को नागों ने वचन दिया है कि हर रोज एक नाग उनके पास आहार स्वरुप जाएगा और उससे वे अपनी भूख शांत कर लिया करेंगे।

    उस वृद्धा ने कहा कि आज उसके बेटे की बारी है। उसका नाम शंखचूड़ है, चह आज पक्षीराज गरुड़ का निवाला बन जाएगा। यह कहकर वृद्धा रोने लगी। इस पर दयावान जीमूतवाहन ने कहा कि आपके बेटे को कुछ नहीं होगा। वह आज पक्षीराज गरुड़ के पास नहीं जाएगा। उसके बदले वे जाएंगे। ऐसा कहकर जीमूतवाहन तय समय पर स्वयं गरुड़ देव के पास पहुंच गए।

    जीमूतवाहन लाल कपड़े में लिपटे थे। गरुड़ देव ने उनको पंजे में दबोच लिया और उड़ गए। इस बीच उन्होंने देखा कि जीमूतवाहन रो रहे हैं और कराह रहे हैं। तब वे एक पहाड़ के शिखर पर रुक गए और जीमूतवाहन को मुक्त किया। तब उन्होंने सारी घटना बताई।

    गरुड़ देव जीमूतवाहन की दया और साहस की भावना से काफी प्रसन्न हुए। उन्होंने जीमूतवाहन को जीवन दान दे दिया। साथ ही उन्होंने वचन दिया कि आज से वे कभी भी किसी नाग को अपना ग्रास नहीं बनाएंगे। इस प्रकार से जीमूतवाहन के कारण नागों के वंश की रक्षा हुई। इसके बाद से ही आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जीमूतवाहन की पूजा की जाती है और जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत रखा जाता है।