Skanda Shashti 2023: आषाढ़ महीने में कब है स्कन्द षष्ठी? जानें-शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व एवं मंत्र
Skanda Sashti 2023 भगवान कार्तिकेय को पार्वती नंदन षडानन मुरुगन सुब्रह्मण्य स्कंद देव और महासेन आदि नामों से जाना जाता है। दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय की विशेष पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि स्कन्द षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Skanda Shashti 2023: सनातन पंचांग के अनुसार, हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी को स्कन्द षष्ठी मनाई जाती है। इस प्रकार आषाढ़ माह में 24 जून को स्कन्द षष्ठी है। इस दिन देवों के देव भगवान शिव एवं माता पार्वती के अग्रज पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही देवों की सेना के सेनापति भगवान कार्तिकेय के निमित्त व्रत-उपवास रखा जाता है। भगवान कार्तिकेय को पार्वती नंदन, षडानन, मुरुगन, सुब्रह्मण्य, स्कंद देव और महासेन आदि नामों से जाना जाता है। दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय की विशेष पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि स्कन्द षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। अतः स्कन्द षष्ठी के दिन विधि-विधान से भगवान कार्तिकेय की पूजा-उपासना करनी चाहिए। आइए, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व एवं मंत्र जानते हैं-
महत्व
सनातन धर्म में नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता यानी जगत जननी आदिशक्ति माता पार्वती की पूजा की जाती है। अतः स्कन्द षष्ठी पर भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से स्कंदमाता भी प्रसन्न होती हैं। स्कंदमाता प्रसन्न होकर व्रती की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण करती हैं। धर्म शास्त्रों में निहित है कि शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ है।
शुभ मुहूर्त
दैनिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी 23 जून को संध्याकाल 07 बजकर 53 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 24 जून को रात्रि में 10 बजकर 17 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान्य है। अतः 24 जून को स्कन्द षष्ठी मनाई जाएगी।
पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म बेला में उठकर सबसे पहले घर की साफ-सफाई करें। इसके पश्चात नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। इस समय आचमन कर व्रत संकल्प लें। अब नवीन वस्त्र धारण कर सूर्य देव को जल अर्पित करें। इसके पश्चात, भगवान शिव और माता पार्वती संग भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा या चित्र पूजा चौकी पर स्थापित करें। तत्पश्चात, शिव परिवार की पूजा फल, फूल, मेवा, कलावा, दीपक, अक्षत, हल्दी, चंदन, दूध, घी, इत्र आदि चीजों से करें। पूजा के समय कार्तिकेय चालीसा का पाठ और स्तुति करें। अंत में आरती-अर्चना कर सुख, समृद्धि और शांति की कामना करें। इच्छा पूर्ति हेतु दिन में व्रत उपवास करें। शाम में आरती-अर्चना कर फलाहार करें। अगले दिन सामान्य दिनों की तरह पूजा कर व्रत खोलें।
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