Masik Karthigai 2023: इस दिन है भाद्रपद की मासिक कार्तिगाई दीपम, नोट करें पूजा विधि और महत्व
Masik Karthigai 2023 धर्म शास्त्रों में निहित है कि मासिक कार्तिगाई तिथि पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के मध्य हुए वाक्य युद्ध को समाप्त करने हेतु देवों के देव महादेव ज्योत रूप में प्रकट हुए थे। अतः इस दिन श्रद्धा भाव से महादेव की ज्योत रूप की पूजा की जाती है। इस शुभ अवसर पर संध्या काल में दीपावली समान दीप जलाए जाते हैं।
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Masik Karthigai 2023: सनातन पंचांग के अनुसार, हर महीने कृतिका नक्षत्र के दिन मासिक कार्तिगाई दीपम मनाया जाता है। इस प्रकार, भाद्रपद महीने में 5 सितंबर को मासिक कार्तिगाई दीपम मनाया जाएगा। 5 सितंबर को शिक्षक दिवस भी मनाया जाता है। धर्म शास्त्रों में निहित है कि मासिक कार्तिगाई तिथि पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के मध्य हुए वाक्य युद्ध को समाप्त करने हेतु देवों के देव महादेव ज्योत रूप में प्रकट हुए थे। अतः इस दिन श्रद्धा भाव से देवों के देव महादेव की ज्योत रूप की पूजा की जाती है। इस शुभ अवसर पर संध्या काल में दीपावली समान दीप जलाए जाते हैं। दक्षिण भारत के कई राज्यों में मासिक कार्तिगाई दीपम धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन देवताओं के सेनापति भगवान कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। उन्हें भगवान मुरुगन भी कहा जाता है। आइए, पूजा विधि और महत्व जानते हैं-
तिथि
ज्योतिषियों की मानें तो 5 सितंबर को प्रातः काल 09 बजे तक भरणी नक्षत्र है। इसके पश्चात, कृतिका नक्षत्र है। वहीं, कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि दोपहर के 03 बजकर 46 मिनट तक है। तदोउपरांत, सप्तमी है। इसी समय 03 बजकर 01 मिनट तक कृतिका नक्षत्र है। इस दौरान भगवान शिव की पूजा-उपासना कर सकते हैं।
महत्व
मासिक कार्तिगाई दीपम पर्व पर शिव मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि मासिक कार्तिगाई तिथि पर देवों के देव महादेव की पूजा करने से साधक के घर में सुख, समृद्धि और शांति आती है। साथ ही सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। मासिक कार्तिगाई दीपम पर संध्याकाल में दीये भी जलाए जाते हैं। इससे घर में व्याप्त नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं।
पूजा विधि
मासिक कार्तिगाई दीपम पर ब्रह्म बेला में उठें। इसके बाद घर की साफ-सफाई करें। अब दैनिक कार्यों से निवृत होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। इसके पश्चात, हथेली में जल रख आचमन करें और श्वेत वर्ण के वस्त्र धारण करें। तदोउपरांत, सूर्य देव की पूजा करें। इसके बाद पूजा गृह में शिव परिवार की प्रतिमा या चित्र को पूजा चौकी पर स्थापित कर विधि विधान से भगवान शिव और मुरुगन की पूजा करें। पूजा में भगवान शिव को भांग, धतूरा, मदार के फूल, फल, धूप, दीप आदि चीजें अर्पित करें। इस समय शिव चालीसा, शिव कवच का पाठ और शिव मंत्रों का जाप करें। अंत में आरती-अर्चना कर सुख और समृद्धि की कामना करें। संध्या काल में आरती-अर्चना कर दीये जलाएं।
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