क्या मंत्र में इतनी शक्ति होती है... क्या जपे गुरुमंत्र अथवा देवता का मंत्र
मंत्र शब्दों का संचय होता है, जिससे इष्ट को प्राप्त कर सकते हैं और अनिष्ट बाधाओं को नष्ट कर सकते हैं । मंत्र इस शब्द में ‘मन्’ का तात्पर्य मन और मनन से है और ‘त्र’ का तात्पर्य शक्ति और रक्षा से है । अगले स्तर पर मंत्र अर्थात जिसके
मंत्र शब्दों का संचय होता है, जिससे इष्ट को प्राप्त कर सकते हैं और अनिष्ट बाधाओं को नष्ट कर सकते हैं । मंत्र इस शब्द में ‘मन्’ का तात्पर्य मन और मनन से है और ‘त्र’ का तात्पर्य शक्ति और रक्षा से है । अगले स्तर पर मंत्र अर्थात जिसके मनन से व्यक्ति का विकास हो।
गुरुमंत्र अथवा देवता का नाम जप
अगर गुरु ने गुरुमंत्र दिया है । ऐसे में, क्या अपने धर्म अनुसार देवता का नाम जप करना चाहिए ? गुरुमंत्र के फलस्वरूप शिष्य अपनी आध्यात्मिक उन्नति करता है। बहुत बार नामजप और मंत्रजप को एक ही समझ लिया जाता है । नामजप और मंत्रजप दोनों में ही किसी अक्षर, शब्द, मंत्र अथवा वाक्य को बार बार जपा जाता है ।
बीज मंत्र क्या है ?
एक बीजमंत्र, मंत्र का बीज होता है । यह बीज मंत्र के विज्ञान को तेजी से फैलाता है । किसी मंत्र की शक्ति उसके बीज में होती है । मंत्र का जप केवल तभी प्रभावशाली होता है जब योग्य बीज चुना जाए । बीज, मंत्र के देवता की शक्ति को जागृत करता है ।
ॐ मंत्र का जप
ॐ क्या है ? ॐ को सभी मंत्रों का राजा माना जाता है । सभी बीजमंत्र तथा मंत्र इसीसे उत्पन्न हुए हैं । इसे कुछ मंत्रों के पहले लगाया जाता है । यह परब्रह्म का परिचायक है । ॐ के निरंतर जप का प्रभाव ॐ र्इश्वर के निर्गुण तत्त्व से संबंधित है । र्इश्वर के निर्गुण तत्त्व से ही पूरे सगुण ब्रह्मांड की निर्मित हुई है । इस कारण जब कोई ॐ का जप करता है, तब अत्यधिक शक्ति निर्मित होती है ।
यदि व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर कनिष्ठ हो, तो केवल ॐ का जप करने से दुष्प्रभाव हो सकता है; क्योंकि उसमें इस जप से निर्मित आध्यात्मिक शक्ति को सहन करने की क्षमता नहीं होती ।
नियमित ॐ का जप करनेवाले कनिष्ठ आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति पर, ॐ से निर्मित आध्यात्मिक शक्ति का विपरीत प्रभाव हो सकता है । कनिष्ठ आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति को शारीरिक कष्ट जैसे अति अम्लता, शरीर के तापमान में वृद्धि इत्यादि अथवा मानसिक स्तर पर व्याकुलता हो सकती है । ॐ से उत्सर्जित तरंगों से अत्यधिक शक्ति उत्पन्न होती है, जिससे भौतिक एवं सूक्ष्म उष्णता निर्मित होती है ।
अध्यात्मशास्त्र का आधारभूत नियम कहता है कि, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध तथा उससे संबंधित शक्ति एकसाथ होती है । इसका अर्थ है कि जहां पर भी र्इश्वर का सांकेतिक रूप उपस्थित होता है, वहां उनकी शक्ति भी रहेगी । अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि ॐ के चिन्ह का कहीं भी चित्रण करना, र्इश्वर से संबंधित सांकेतिक चिन्हों के साथ खिलवाड करना है और इससे पाप लगता है ।
गुरुमंत्र
गुरुमंत्र देवता का नाम, मंत्र, अंक अथवा शब्द होता है जो गुरु अपने शिष्य को जप करने हेतु देते हैं । गुरुमंत्र के फलस्वरूप शिष्य अपनी आध्यात्मिक उन्नति करता है और अंतत: मोक्ष प्राप्ति करता है । वैसे गुरुमंत्र में जिस देवता का नाम होता है, वही विशेष रूप से उस शिष्य की आध्यात्मिक प्रगति के लिए आवश्यक होते हैं ।
मोक्ष प्राप्ति, एक व्यक्ति के जीवन की सर्वोच्च आध्यात्मिक अनुभूति होती है, उसे र्इश्वर के साथ एकरूप हो जाने का अनुभव होता है; निरंतर आनंद की अनुभूति होती है ।
शिष्य ऐसा साधक होता है, जिसका आध्यात्मिक स्तर हो । इसका अर्थ है, शिष्य वह है जो साधना के लिए अपने तन, मन, धन का त्याग करता हो, और आध्यात्मिक उन्नति हेतु उसमें तीव्र लगन हो । गुरुमंत्र की परिणामकारकता, मंत्र देनेवाले व्यक्ति के आध्यात्मिक स्तर पर निर्भर करती है ।
गुरुमंत्र की आध्यात्मिक शक्ति
यदि कोर्इ व्यक्ति अपनी साधना के प्रति जागरूक हो और उसमें आध्यात्मिक प्रगति करने की तीव्र उत्कंठा हो, तो अप्रकट गुरुतत्त्व अथवा मार्गदर्शक तत्त्व उसके जीवन में उसकी प्रगति हेतु उचित अवसर (गुरु के संदर्भ में) निर्माण करता है । व्यक्ति की श्रद्धा जिस पर अधिक हो, गुरुमंत्र अथवा अपने जन्मानुसार जो धर्म है, उसी धर्म के देवता का नामजप किया जाए । जब कोर्इ परेच्छा से आचरण करता है, तो उसका अहं कम होता है । यदि व्यक्ति श्रद्धापूर्वक गुरुमंत्रका जप करे और उसमें र्इश्वरप्राप्ति की तीव्र लगन हो, तो अप्रकट गुरुतत्त्व अथवा र्इश्वरका गुरुरूप स्वयं पृथ्वी के वास्तिवक गुरु को उसके जीवन में लाते हैं ।
कभी-कभी संत किसी व्यक्ति को जप प्रदान करते हैं, जिससे उस व्यक्ति के जीवन में आनेवाली आध्यात्मिक स्वरूप की बाधाएं तथा दूर हो जाएं । इससे आध्यात्मिक संकटों का भी निवारण होता है । कभी-कभी लोग इसी जप को गुरुमंत्र समझने की भूल करते हैं । यह ध्यान में रखें कि गुरुमंत्र केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए होता है, जिससे मोक्ष प्राप्ति भी होती है ।
कुछ लोग गुरु से निरंतर ही गुरुमंत्र की मांग करते रहते हैं । ऐसे भक्तों को गुरु, मंत्र दे देते हैं ! उसी प्रकार पैसे देकर जो गुरुमंत्र लिया जाता है, वह भी नाम मात्र का ही गुरुमंत्र होता है । यदि किसी व्यक्ति (अथवा साधक) को गुरु गुरुमंत्र देते हैं, तब भी उस व्यक्ति को गुरुमंत्र जप के साथ आध्यात्मिक प्रगति के लिए सत्सेवा, त्याग तथा सभी से निरपेक्ष प्रेम (प्रीति) करना चाहिए ।
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