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    रविवार को है कुश ग्रहणी अमावस्या में क्या होता है कुश का महत्व

    By Molly SethEdited By:
    Updated: Sat, 08 Sep 2018 04:41 PM (IST)

    9 सितंबर 2018 को पड़ रही पितरों की पूजा को समर्पित कुश ग्रहणी अमावस्या में कुश के महत्व को बता रहे हैं पंडित दीपक पांडे।

    रविवार को है कुश ग्रहणी अमावस्या में क्या होता है कुश का महत्व

    कर्इ नामों से जानी जाती है ये अमावस्या 

    कृष्ण पक्ष की अमावस्या को कुश ग्रहणी अमावस्या के रूप में मनाया जाता है इसे देव पितृ कार्य अमावस्या आैर पिठोरी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष यह अमावस्या 9 सितंबर 2018 रविवार को पड़ रही है। मान्यता है कि इस दिन इस दिन व्रत और अन्य पूजन कार्य करने से पितरों की आत्मा को शान्ति प्राप्त होती है। शास्त्रों के अनुसार अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव होता है, इसीलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण आैर दान-पुण्य का अत्याधिक महत्व होता है। इस दिन कुश से पूजा की जाती है। 

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    कुश के कर्इ प्रकार 

    कुश ग्रहणी अमावस्या को विभिन्न प्रकार कुश से पूजा करने का विधान है। शास्त्रों में 10 प्रकार कुशों का उल्लेख मिलता है मान्यता है कि घास के इन दस प्रकारों में जो भी घास आसानी से मिल सके उसे पूरे वर्ष के लिए एकत्रित कर लिया जाता है। खास बात ये है कि सूर्योदय के समय घास को केवल दाहिने हाथ से उखड़ कर ही एकत्रित करना चाहिये और उसकी पत्तियां पूरी की पूरी होनी चाहिये। कुशोत्पाटिनी अमावस्या को साल भर के धार्मिक कार्यों के लिये कुश एकत्र की जाती है, क्योंकि इसका प्रयोग प्रत्येक धार्मिक कार्य के लिए किया जाता है। ध्यान रहे कुशा का सिरा नुकीला होना चाहिए आैर यदि इसमें सात पत्ती हो तो सर्वोत्तम होता है।इसका कोई भाग कटा फटा न हो आैर कुशा तोड़ते समय‘हूं फट्’ मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। 

    कुश ग्रहणी अमावस्या का महातम्य 

    इस दिन पूर्व या उत्तर मुक्त बैठ कर ही पूजा करें। इस दिन का महत्व बताते हुए कर्इ पुराणों में कहा गया है कि रूद्र अवतार माने जाने वाले हनुमान जी कुश का बना हुआ जनेऊ धारण करते हैं इसीलिए कहा जाता है कांधे मूंज जनेऊ साजे। साथ ही इस दिन को पिथौरा अमावस्या कहते हैं आैर इस दिन दुर्गा जी की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार स्वयं पार्वती जी ने देवराज इंद्र की पत्नी इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था। इस दिन विवाहित स्त्रियों द्वारा संतान प्राप्ति आैर उसकी कुशलता की कामना के लिये उपवास किया जाता है और दुर्गा सहित सप्तमातृ आैर 64 अन्य देवियों की पूजा की जाती है।

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