Vrishabha Sankranti 2020: आज है 'वृषभ संक्रांति' जानें-व्रत कथा, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं मंत्र
Vrishabha Sankranti 2020 वृषभ संक्रांति का अन्य संक्रांतियों के समतुल्य फलों की प्राप्ति होती है। अतः ज्येष्ठ माह की सप्तमी के दिन ही तामसी भोजन का त्याग कर देना चाहिए।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Vrishabha Sankranti 2020: हिन्दू धर्म अनुसार, जब सूर्य मेष राशि से निकलकर वृषभ राशि में प्रवेश करते हैं तो यह परिवर्तन वृषभ संक्रांति कहलाता है। इस साल वृषभ संक्रांति 14 मई को मनाई जाएगी। यह पर्व हिंदी कैलेंडर अनुसार, साल के तीसरे महीने में मनाई जाती है। इस दिन नदियों और सरोवरों में स्नान-ध्यान हेतु श्रधालुओं की भीड़ उमड़ती है। हालांकि, कोरोना वायरस महामारी के चलते इस साल लोग अपने घरों में ही वृषभ संक्रांति मनाएंगे। आइए, अब वृषभ संक्रांति की शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत मंत्र जानते हैं-
वृषभ संक्रांति शुभ मुहूर्त
इस दिन शुभ मुहूर्त सुबह में 10 बजकर 19 मिनट से लेकर शाम के 5 बजकर 33 मिनट तक है। जबकि महा फलदायी शुभ मुहूर्त दोपहर में 3 बजकर 17 मिनट से लेकर शाम के 5 बजकर 33 मिनट तक है। इस अवधि में स्नान-ध्यान जप तप और दान कर सकते हैं। इसके अलावा, आप चौघड़िया तिथि अमृत, शुभ, लाभ और चर के समय में भी पूजा-आराधना कर सकते हैं।
वृषभ संक्रांति पूजा विधि और मंत्र
वृषभ संक्रांति का अन्य संक्रांतियों के समतुल्य फलों की प्राप्ति होती है। अतः ज्येष्ठ माह की सप्तमी के दिन ही तामसी भोजन का त्याग कर देना चाहिए। इसके अगले दिन यानि वृषभ संक्रांति के दिन ब्रह्म बेला में उठें और घर की साफ -सफाई करें। इसके पश्चात स्नान ध्यान करें। लॉकडाउन के चलते नदियों तथा सरोवरों में स्नान करना संभव नहीं है। ऐसी स्थिति में घर पर ही गंगाजल मिश्रित पानी से स्नान करें। इसके बाद सर्वप्रथम भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। जब सूर्य देव को अर्घ्य दें तो निम्न मंत्र का जरूर उच्चारण करें।
एहि सूर्य! सहस्त्रांशो! तेजो राशे! जगत्पते!
अनुकम्प्यं मां भक्त्या गृहाणार्घ्य दिवाकर!
ब्राह्मणों एवं गरीबों को दान दें
चूंकि, लॉकडाउन के चलते प्रवाहित जलधारा में तिलांजलि नहीं कर सकते हैं। ऐसे में कलश में तिल और जल डालकर तिलांजलि करें। फिर घर में भगवान विष्णु जी की पूजा फल, फूल, धूप-दीप, दूर्वा आदि से करें। इसके बाद जथा शक्ति तथा भक्ति के भाव से ब्राह्मणों एवं गरीबों को दान दें। आप दान में तंदुल, हल्दी, कंबल, मुद्रा आदि दे सकते हैं। दिन भर उपवास रखें। शाम में आरती अर्चना के बाद फलाहार कर सकते हैं। अगले दिन नित्य दिनों की तरह स्नान-ध्यान, पूजा आराधना के बाद व्रत खोलें।