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    Vishnu, Laxmi Ji And Ekadashi Ki Aarti: एकादशी की पूजा करते समय अवश्य पढ़ें विष्णु जी, लक्ष्मी जी और एकादशी की आरती

    By Shilpa SrivastavaEdited By:
    Updated: Fri, 25 Dec 2020 08:50 AM (IST)

    Vishnu Laxmi Ji And Ekadashi Ki Aarti हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहा जाता है। एक तिथि पूर्णिमा के बाद और दूसरी तिथि अमावस्या के बाद। जो एकादशी पूर्णिमा के बाद आती है उसे कृष्ण पक्ष की एकादशी कहा जाता है।

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    Vishnu, Laxmi Ji And Ekadashi Ki Aarti: एकादशी की पूजा करते समय पढ़ें विष्णु-लक्ष्मी जी और एकादशी की आरती

    Vishnu, Laxmi Ji And Ekadashi Ki Aarti: हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहा जाता है। यह तिथि प्रत्येक मास में दो बार आती है। एक तिथि पूर्णिमा के बाद और दूसरी तिथि अमावस्या के बाद। जो एकादशी पूर्णिमा के बाद आती है उसे कृष्ण पक्ष की एकादशी कहा जाता है। वहीं, जो एकादशी अमावस्या के बाद आती है उसे शुक्ल पक्ष की एकादशी कहा जाता है। इन दोनों ही एकादशियों का महत्व भारतीय सनातन संप्रदाय में बहुत ज्यादा है। आज मोक्षदा एकादशी है। आज के दिन विष्णु जी की पूजा की जाती है। साथ ही लक्ष्मी जी की भी पूजा की जाती है। पूजा के दौरान विष्णु जी, लक्ष्मी जी और एकादशी की आरती अवश्य करनी चाहिए। आइए पढ़ते हैं इनकी आरती।

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    विष्णु जी की आरती:

    ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।

    भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥

    जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।

    सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥

    मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।

    तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥

    तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥

    पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥

    तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।

    मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥

    तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

    किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥

    दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।

    अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥

    विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।

    श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥

    तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।

    तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥

    जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।

    कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥

    लक्ष्मी जी की आरती:

    ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।

    तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥

    ओम जय लक्ष्मी माता॥

    उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।

    सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥

    ओम जय लक्ष्मी माता॥

    दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।

    जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥

    ओम जय लक्ष्मी माता॥

    तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।

    कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥

    ओम जय लक्ष्मी माता॥

    जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।

    सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥

    ओम जय लक्ष्मी माता॥

    तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।

    खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥

    ओम जय लक्ष्मी माता॥

    शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।

    रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥

    ओम जय लक्ष्मी माता॥

    महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।

    उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥

    ओम जय लक्ष्मी माता॥

    एकादशी की आरती:

    ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।

    विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ॐ।।

    तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।

    गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ॐ।।

    मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।

    शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।

    पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है,

    शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। ॐ ।।

    नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।

    शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। ॐ ।।

    विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,

    पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। ॐ ।।

    चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,

    नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। ॐ ।।

    शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,

    नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। ॐ ।।

    योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।

    देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। ॐ ।।

    कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।

    श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। ॐ ।।

    अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।

    इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। ॐ ।।

    पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।

    रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। ॐ ।।