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    Vishnu Ji Ki Aarti: गुरुवार के दिन ऐसे प्राप्त करें विष्णु जी की कृपा, यहां पढ़ें पूजा विधि और आरती

    Updated: Thu, 15 Feb 2024 08:00 AM (IST)

    वैसे तो हर दिन पूजा-अर्चना कनरे से भगवान की कृपा साधक पर बनी रहती है। लेकिन जगत के पालनहार प्रभु श्री हरि की कृपा प्राप्त करने के लिए गुरुवार का दिन सबसे उत्तम माना गया है। इस दिन भक्तों द्वारा पूरे विधि-विधान के साथ विष्णु जी की पूजा अर्चना करने से साधक को सभी कष्टों से मुक्ति मिल सकती है।

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    Vishnu Ji Ki Aarti गुरुवार को ऐसे करें विष्णु जी पूजा।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Thursday Remedies: सनातन धर्म में प्रत्येक दिन किसी-न-किसी देवी-देवता की आराधना के लिए समर्पित माना जाता है, ठीक उसी प्रकार गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने का विधान है। इसलिए प्रभु श्री हरि की कृपा प्राप्ति के लिए गुरुवार का दिन विशेष महत्व रखता है। ऐसे में आइए पढ़ते हैं विष्णु जी की पूजा विधि और आरती।

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    इस तरह करें पूजा

    गुरुवार के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठें और स्नानादि से निवृत हो जाएं। इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें। आप चाहें तो व्रत का संकल्प भी ले सकते हैं। इसके बाद पूजा घर की अच्छे से साफ-सफाई के बाद भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। पूजा के दौरान भगवान विष्णु को तुलसी या तुलसी की मंजरी जरूर अर्पित करें। साथ ही गुरुवार के दिन विष्णु जी को पीले रंग के फूल व फलों का भोग लगाना चाहिए। इसके साथ ही पीले रंग के चना दाल और गुड़ को मिलाकर भोग लगाएं।

    भगवान विष्णु जी की आरती

    ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।

    भगवान विष्णु की आरती

    भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।

    स्वामी दुःख विनसे मन का।

    सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।

    स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।

    तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।

    स्वामी तुम अन्तर्यामी।

    पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।

    स्वामी तुम पालन-कर्ता।

    मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

    स्वामी सबके प्राणपति।

    किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।

    स्वामी तुम ठाकुर मेरे।

    अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा।

    स्वमी पाप हरो देवा।

    श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, सन्तन की सेवा॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।

    स्वामी जो कोई नर गावे।

    कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥

    ॐ जय जगदीश हरे।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

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