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पड़ रहा है बुधवार और विनायकी गणेश चतुर्थी का अदभुद संयोग ऐसे करें पूजा मिलेगा पुण्‍यफल

इस बार 22 नवंबर को विनायकी गणेश चतुर्थी गणपति को समर्पित दिन बुधवार को ही पड़ रही है जो अत्‍यंत शुभ मानी जाती है। जानें कैसे करें व्रत और पूजा।

By Molly SethEdited By: Published: Tue, 21 Nov 2017 12:32 PM (IST)Updated: Wed, 29 Nov 2017 07:45 AM (IST)
पड़ रहा है बुधवार और विनायकी गणेश चतुर्थी का अदभुद संयोग ऐसे करें पूजा मिलेगा पुण्‍यफल
पड़ रहा है बुधवार और विनायकी गणेश चतुर्थी का अदभुद संयोग ऐसे करें पूजा मिलेगा पुण्‍यफल

क्‍या है विनायकी गणेश चतुर्थी 

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हिंदू पंचाग के अनुसार हर माह पड़ने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी कहते हैं। पुराणों बताते हैं कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकष्टी गणेश चतुर्थी कहलाती है। दोनों ही भगवान गणेश को समर्पित होती हैं, इस बार विनायक गणेश चतुर्थी बुधवार को पड़ रही है इस कारण इसका महत्‍व काफी बढ़ गया है। बहुत से लोग विनायक चतुर्थी को वरद विनायक चतुर्थी के तौर पर भी मनाते हैं।इस अवसर पर गणेश की पूजा दिन में दो बार दोपहर और मध्याह्न में की जाती है। इस दिन श्री गणेश का पूजन-अर्चन करना लाभदायी होगा। विनायकी गणेश चतुर्थी पर गणेश की उपासना करने से घर में सुख-समृद्धि और धन-दौलत आती है, इसके साथ ही ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति भी होती है।

ऐसे करें व्रत 

जिस प्रकार चतुर्दशी को शंकर जी की और एकादशी को विष्णु जी की पूजा की जाती है उसी तरह चतुर्थी पर में गणेश जी की पूजा का विशेष महत्‍व होता है। विनायकी गणेश चतुर्थी का व्रत हर माह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को आता है। नारद पुराण में बताये गए नियमों के अनुसार विनायकी गणेश चतुर्थी को प्रातः स्नान कर के गणेश जी की मूर्ति को स्थापित करें, इसके पश्‍चात विधि- विधान से फल, नैवेद्य और धूप, दीप से गणेश जी की पूजा और आरती करें। इस अवसर पर गणेश जी को लड्डूओं का भोगलगायें। गणपति को इन मंत्रों का जाप करते हुए ओम गणाधिपायनम:, ओम उमापुत्रायनम:,ओम विघ्ननाशायनम:, ओम विनायकायनम:, ओम ईशपुत्रायनम:, ओम सर्वसिद्धिप्रदायनम:, ओम एकदन्तायनम:, ओम गजवक्त्रायनम:, ओम मूषकवाहनायनम:  और ओम कुमारगुरवेनम:,  सिंदूर चढ़ायें। गुड़ या बूंदी के 21 लड्डूओं का भोग लगाएं और इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास चढ़ाएं और 5 को दान कर दें। शेष लड्डू प्रसाद के रूप में खुद ग्रहण करें और बांट दें। शाम को दान पुण्‍य करने के बाद भोजन ग्रहण करें।  संभव हो तो फलाहार करके अगले दिन उपवास पूरा करें। 


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