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    Vijaya Ekadashi 2023: विजया एकादशी आज, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

    By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo Mishra
    Updated: Thu, 16 Feb 2023 07:48 AM (IST)

    Vijaya Ekadashi 2023 हिन्दू धर्म में सभी तिथियों में एकादशी तिथि को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस विशेष दिन पर भगवान शिव की उपासना करने से सभी कष्ट और दुःख दूर हो जाते हैं। आइए जानते हैं क्या है पूजा का समय और पूजा विधि।

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    Vijaya Ekadashi 2023: विजया एकादशी पर इस समय करें भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की उपासना।

    नई दिल्ली, अध्यात्मिक डेस्क | Vijaya Ekadashi 2023 Puja Samay and Vidhi: फाल्गुन मास में पहली एकादशी व्रत आज पड़ रही है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं। आज के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि आज श्री हरि विष्णु की पूजा करने से व्य़क्ति को हर क्षेत्र में सफलता हासिल होती है। एकादशी व्रत के दिन पर शुभ मुहूर्त में की गई पूजा-पाठ और दान-धर्म से साधकों को विशेष लाभ मिलेगा। आइए जानते हैं विजया एकादशी व्रत पर किस समय करें श्रीहरि की उपासना और पूजा विधि।

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    विजया एकादशी व्रत पूजा समय

    वैदिक पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि का आरंभ 16 फरवरी 2023 को सुबह 04 बजकर 02 मिनट से होगा और इस तिथि का समापन 17 फरवरी 2023 रात्रि 01 बजकर 09 मिनट पर होगा। इस दिन प्रातः पूजा के लिए ब्रह्म मुहूर्त का समय सुबह 04:32 से प्रातः 05:17 तक रहेगा और संध्या आरती के लिए गोधूलि मुहूर्त शाम 06:45 बजे से शाम 07:08 मिनट तक रहेगा। पंचांग के अनुसार व्रत पारण का समय 17 फरवरी 2023 को सुबह 06:31 से सुबह 08:35 तक रहेगा।

    विजया एकादशी पूजा विधि

    • प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान करें और घर के मन्दिर में दीप जलाएं।

    • भगवान विष्णु का अभिषेक गंगाजल से करें आर उन्हें तुलसी दल और पुष्प आदि अर्पित करें।

    • इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें और आरती अवश्य करें।

    • एकादशी व्रत के दिन साधक को सात्विक भोजन का ही सेवन करना चाहिए और हो सके तो व्रत का पालन करना चाहिए।

    • संध्या पूजा के समय भगवान विष्णु की विधिवत पूजा के बाद पुनः आरती करें और तुलसी के सामने दीपक जलाएं।

    एकादशी मंत्र का करें जाप

    श्री विष्णु मंत्र

    मंगलम भगवान विष्णुः, मंगलम गरुणध्वजः।

    मंगलम पुण्डरी काक्षः, मंगलाय तनो हरिः।।

    विष्णु स्तुति

    शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

    विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।

    लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं

    वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ।।

    यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे: ।

    सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा: ।

    ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो

    यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम: ।।

    डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।