Vat Savitri 2022 Katha: इस कथा के बिना अधूरा है वट सावित्री व्रत, अखंड सौभाग्य की होगी प्राप्ति
Vat Savitri Vrat Katha वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या के साथ आज मनाया जा रहा है। आज सुहागिन महिलाएं व्रत रखने के साथ बरगद के पेड़ की विधि-विधान से पूजा करती हैं। इसके साथ ही पूजा के दौरान वट सावित्री व्रत की कथा सुनना लाभकारी माना जाता है।

नई दिल्ली, Vat Savitri 2022 Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत पड़ता है। आज सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। इसके साथ ही वट वृक्ष से कामना करती हैं पति के साथ-साथ संतान सुखी रहें। आज के दिन बरगद के पेड़ की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत कथा सुनना शुभ होता है।
वट सावित्री व्रत कथा
प्रसिद्ध तत्त्वज्ञानी अश्वपति भद्र देश के राजा थे। उनको संतान सुख नहीं प्राप्त था। इसके लिए उन्होंने 18 वर्ष तक कठोर तपस्या की, जिसके उपरांत सावित्री देवी ने कन्या प्राप्ति का वरदान दिया। इस वजह से जन्म लेने के बाद कन्या का नाम सावित्री रखा गया। कन्या बड़ी होकर बहुत ही रूपवान हुई। योग्य वर न मिलने की वजह से राजा दुखी रहते थे। राजा ने कन्या को खुद वर खोजने के लिए भेजा। जंगल में उसकी मुलाकात सत्यवान से हुई। द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति रूप में स्वीकार कर लिया।
इस घटना की जानकारी के बाद ऋषि नारद जी ने अश्वपति से सत्यवान की अल्प आयु के बारे में बताया। माता-पिता ने बहुत समझाया, परन्तु सावित्री अपने धर्म से नहीं डिगी। जिनके जिद्द के आगे राजा को झुकना पड़ा।
सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। सत्यवान बड़े गुणवान, धर्मात्मा और बलवान थे। वे अपने माता-पिता का पूरा ख्याल रखते थे। सावित्री राजमहल छोड़कर जंगल की कुटिया में आ गई थीं, उन्होंने वस्त्राभूषणों का त्याग कर अपने अंधे सास-ससुर की सेवा करती रहती थी।
सत्यवान् की मृत्यु का दिन निकट आ गया। नारद ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था। समय नजदीक आने से सावित्री अधीर होने लगीं। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि के कहने पर पितरों का पूजन किया।
प्रत्येक दिन की तरह सत्यवान भोजन बनाने के लिए जंगल में लकड़ियां काटने जाने लगे, तो सावित्री उनके साथ गईं। वह सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था। सत्यवान लकड़ी काटने पेड़ पर चढ़े, लेकिन सिर चकराने की वजह से नीचे उतर आये। सावित्री पति का सिर अपनी गोद में रखकर उन्हें सहलाने लगीं। तभी यमराज आते दिखे जो सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे। सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे जाने लगीं।
उन्होंने बहुत मना किया परंतु सावित्री ने कहा, जहां मेरे पतिदेव जाते हैं, वहां मुझे जाना ही चाहिये। बार-बार मना करने के बाद भी सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं। सावित्री की निष्ठा और पति परायणता को देखकर यम ने एक-एक करके वरदान में सावित्री के अंधे सास-ससुर को आंखें दी, उसका खोया हुआ राज्य दिया और सावित्री को देखने के लिए कहा। वह लौटे कैसे? सावित्री के प्राण तो यमराज लिये जा रहे थे।
यमराज ने फिर कहा कि सत्यवान् को छोडकर चाहे जो मांगना चाहे मांग सकती हो, इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्यवती का वरदान मांगा। यम ने बिना विचारे प्रसन्न होकर तथास्तु बोल दिया। वचनबद्ध यमराज आगे बढ़ने लगे। सावित्री ने कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गईं, जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था।
सत्यवान जीवित हो गए, माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई और उनका राज्य भी वापस मिल गया। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे। अतः पतिव्रता सावित्री की तरह ही अपने सास-ससुर का उचित पूजन करने के साथ ही अन्य विधियों को प्रारंभ करें। वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से व्रत रखने वाले के वैवाहिक जीवन के सभी संकट टल जाते हैं।
Pic Credit- Instagram/bhavana.verma.39
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