Varalaxmi Vrat Katha: वरलक्ष्मी की व्रत कथा सुनने से प्राप्त होती है मां लक्ष्मी की कृपा
Varalaxmi Vrat Katha आज वरलक्ष्मी का व्रत है। आज के दिन वरलक्ष्मी का व्रत करने से मां अपने भक्तों की इच्छाएं पूर्ण करती हैं। इस देवी को “वर और “लक्ष्मी” के रूप में जाना जाता है।
Varalaxmi Vrat Katha: आज वरलक्ष्मी का व्रत है। आज के दिन वरलक्ष्मी का व्रत करने से मां अपने भक्तों की इच्छाएं पूर्ण करती हैं। इस देवी को “वर" और “लक्ष्मी” के रूप में जाना जाता है। इस व्रत को श्रावण शुक्ल पक्ष के दौरान किया जाता है। अगर सच्चे मन से इस व्रत को किया जाए तो परिवार में सुख-संपत्ति बनी रहती है। वहीं, अगर शादीशुदा दंपत्ति इस व्रत को करें तो उन्हें संतान प्राप्ति का सुख मिलता है। कहा जाता है कि वरलक्ष्मी व्रत करना अष्टलक्ष्मी पूजन के बराबर माना जाता है। इस व्रत को कर्नाटक तथा तमिलनाडु में बेहद ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। वरलक्ष्मी व्रत के दौरान अगर आप इस व्रत की कथा सुनें तो व्रत का फल दोगुना हो जाता है।
वरलक्ष्मी व्रत कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, मगध राज्य में कुंडी नाम का एक राजा रहता था। ऐसा कहा जाता है कि इस नगर का निर्माण स्वर्ग से हुआ था। इस नगर में एक ब्राह्मणी नारी रहती थी जिसका नाम चारुमति था। ये अपने परिवार के साथ कुंडी नगर में रहा करती थी। चारुमति बेहद ही कर्त्यव्यनिष्ठ थी। वो अपने सास, ससुर और पति की सेवा में डूबी रहती थी। चारुमति मां लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना करती थी। कुल मिलाकर चारुमति एक आदर्श नारी का जीवन व्यतीत कर रही थी।
एक रात चारुमति को मां लक्ष्मी का स्वप्न आया। उन्होंने सपने में आकर कहा कि चारुमति हर शुक्रवार को उनके निमित्त मात्र वरलक्ष्मी व्रत को करे। इस व्रत को करने से उसे मनोवांछित फल प्राप्त होगा। इसके बाद अगले दिन सुबह चारुमति ने मां लक्ष्मी के स्वपन्न का पालन किया। उसने वर लक्ष्मी व्रत को अन्य स्त्रियों के साथ मिलकर विधिवत पूरा किया। साथ ही श्रद्धापूर्वक पूजन किया। पूजन समाप्त होने के बाद सभी स्त्रियां कलश की परिक्रमा करने लगीं। परिक्रमा के दौरान स्त्रियों के शरीर सोने की आभूषणों से सज गए।
यही नहीं, सभी स्त्रियों के घर भी सोने के बन गए। साथ ही उनके घर में घोड़े, हाथी, गाय आदि पशु भी आ गए। यह सब देखकर चारुमति की प्रशंसा सभी स्त्रियां करने लगीं। चारुमति ने सभी को व्रत विधि के बारे में बताया। माना जाता है कि कालांतर में भगवान शिव जी ने माता पार्वती को यह कथा सुनाई थी। इस व्रत कथा को सुनने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।