Tulsi Puja: चैत्र माह में इस तरह करें तुलसी जी की पूजा, मिलेगा मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद
हिंदू धर्म में तुलसी को देवी-देवताओं की तरह ही पूजनीय और माना गया है यही कारण है कि लगभग हर हिंदू घर में तुलसी का पौधा पाया जाता है। साथ ही विधि-विधान से भी इसकी पूजा-अर्चना (Tulsi Puja Niyam) भी की जाती है जिससे साधक व उसके परिवार पर तुसली जी के साथ-साथ मां लक्ष्मी की कृपा भी बनी है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। इस बार चैत्र माह की शुरुआत 15 मार्च से हो चुकी है, जिसका समापन 12 अप्रैल को होगा। यह अवधि काफी महत्वपूर्ण मानी गई है, क्योंकि इसमें चैत्र नवरात्र और राम नवमी जैसे पर्व मनाए जाते हैं। साथ ही इस अवधि में तुलसी की पूजा-अर्चना द्वारा आप जीवन में काफी अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। तो चलिए जानते हैं कि चैत्र माह में आर किस प्रकार तुलसी जी की सेवा कर सकते हैं।
इस तरह करें पूजा
सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाएं और साफ-सुथरे कपड़े पहनें। इसके बाद तुलसी जी को जल अर्पित करें। इसी के साथ सिंदूर, फूल और भोग आदि भी अर्पित करें। घी का दीपक जलाएं और तुलसी जी के मंत्रों का जप करें। अंत में भोग लगाकर आरती करें और सभी लोगों में प्रसाद बाटें। शाम के समय भी तुलसी के समक्ष घी का दीपक जरूर जलाएं।
इन नियमों का रखें ध्यान
हमेशा स्नान करने के बाद ही तुलसी को स्पर्श और उनकी पूजा करनी चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखें कि रविवार और एकादशी के दिन तुलसी में न तो जल चढ़ाएं और न ही इसके पत्ते उतारें। साथ ही सूर्यास्त के बाद तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए। कभी भी गंदे या फिर जूठे हाथों से तुलसी का स्पर्श नहीं करना चाहिए।
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तुलसी जी के मंत्र
1. महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।।
2. तुलसी गायत्री - ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे, विष्णुप्रियायै च धीमहि, तन्नो वृन्दा प्रचोदयात् ।।
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3. तुलसी स्तुति मंत्र -
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
4. तुलसी नामाष्टक मंत्र -
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
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