आज है माघ गणेश जयंती, पाप आैर अन्याय के अंत के लिए हुए आठ अवतार
माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जयंती मनायी जाती है। जाने प्रथम पूज्य गणपति को समर्पित इस दिन पर पूजन का मुहूर्त आैर उनके आठ अवतारों के नाम।
सर्वप्रथम पृथ्वी पर हुआ गणेश तत्व का आभास
माघ शुक्ल चतुर्थी पर गणेश जयंती मनायी जाती है, इस पर्व को तिल कुंड चतुर्थी या माघ विनायक चतुर्थी के नाम से भी मनाते हैं। इस बार ये पर्व 8 फरवरी 2019 को मनाया जा रहा है। पौराणिक कथाआें के अनुसार सर्वप्रथम गणेश तरंगों का धरती पर अवतरण हुआ था। यही कारण है कि इस दिन को गणेश जंयती के रूप में मनाया जाता है। दक्षिण भारतीय मान्यता के अनुसार भी इस दिन श्रीगणेश का जन्मदिवस होता है। इस तिथि पर की गई गणेश पूजा अत्याधिक लाभ देने वाली होती है। अग्निपुराण में भी भाग्य आैर मोक्ष प्राप्ति के लिए तिलकुंड चतुर्थी के व्रत का विधान बताया गया है। इस दिन चंद्रमा का दर्शन करना वर्जित कहा जाता है। एेसा करने पर मानसिक कष्ट की संभावना होती है।
पूजन विधि एवम् शुभ मुहूर्त
आज के दिन पूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल व लाल चंदन का प्रयोग सर्वोत्तम माना जाता है। पूजा की तिथि का आरंभ आज सुबह 10.17 बजे से, प्रारंभ हो गया है आैर अब कल 9 फरवरी 2019 की सुबह 12.25 बजे तक रहेगा। इस दौरान शुद्घ तन मन से किसी भी समय श्री गणेश की पूजा अर्चना की जा सकती है। सारा समय शुभ मुहूर्त ही है। पूजा करने के लिए सबसे पहले नित्य कर्म से निवृत्त होकर शुद्ध आसान में बैठकर पूजन सामग्री को एकत्रित कर लें। ये सामग्री है पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौलि, लाल चंदन आैर मोदक उसके बाद शुद्ध जल से प्रतिमा को स्नान करा कर शु़द्घ दुर्वा को धोकर चढ़ाये। श्रीगणेश को तुलसी दल व तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए। उनकी शिव व गौरी, नंदी, कार्तिकेय सहित षोडषोपचार विधि से पूजा करें। गणेश जी को मोदक अत्यंत प्रिय हैं इसलिए उन्हें प्रसाद के रूप में चढ़ायें।
गणेश के आठ अवतार
पौराणिक कथाआें के अनुसार मानव जाति के कल्याण के लिए अनेक देवताआें ने कर्इ बार पृथ्वी पर अवतार लिए हैं। उसी प्रकार गणेश जी ने भी आसुरी शक्तियों से मुक्ति दिलाने के लिए अवतार लिए हैं। उनके अवतारों की संख्या आठ बतार्इ गर्इ है। उनके इन अवतारों का वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, गणेश अंक आदि अनेक ग्रंथो से प्राप्त होता है। उनके नाम इस प्रकार हैं, वक्रतुंड, एकदंत, महोदर, गजानन, लंबोदर, विकट, विघ्नराज, और धूम्रवर्ण।