Somvar ke Upay: सोमवार के दिन करें रुद्राष्टकम का पाठ, पूरी होगी हर मनोकामना
Somavar ke Upay रामचरित मानस में रुद्राष्टकम पाठ का वर्णन मिलता है। शास्त्रों में इस पाठ की विशेष महिमा बताई गई है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यह रुद्राष्टक बहुत लाभकारी सिद्ध होता है। जो भी मनुष्य इस स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं उन पर भोलेनाथ विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

नई दिल्ली, अध्यात्म। Somvar ke Upay: भगवान शिव को सभी देवताओं में सबसे उच्च स्थान प्राप्त है, इसलिए उन्हें देवों के देव महादेव के नाम से भी जाना जाता है। सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है। इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से उनकी दया दृष्टि अपने भक्तों पर बनी रहती है। आज हम आपको रुद्राष्टकम के पाठ के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका जप सोमवार के दिन करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
रुद्राष्टकम मंज्ञ का महत्व
शास्त्रों में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति अपने शत्रुओं से परेशान है तो यह पाठ उसे शत्रुओं से मुक्ति दिलाता है। इसके लिए कुशा के आसन पर बैठकर लगाता 7 दिनों तक सुबह शाम 'रुद्राष्टकम' स्तुति का पाठ करें। पौराणिक मान्याओं के अनुसार रावण पर विजय प्राप्ति के लिए भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना कर रूद्राष्टकम स्तुति का पाठ किया था। इसी के परिणाम स्वरूप उन्होंने लंकापति रावण पर विजय प्राप्त की थी।
शिवजी का रुद्राष्टकम पाठ -
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं । विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥
निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं । गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं । गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥2॥
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं । मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ॥
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा । लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥3॥
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं । प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ॥
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं । प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥4॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं । अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ॥
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं । भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥5॥
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी । सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी । प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥
न यावद् उमानाथपादारविन्दं । भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं । प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां । नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ॥
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं । प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥9॥
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