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    Shri Ram Stuti: बजरंगबली को करना है प्रसन्न तो पूजा करते समय जरूर पढ़ें श्रीराम स्तुति

    By Shilpa SrivastavaEdited By:
    Updated: Tue, 22 Dec 2020 11:41 AM (IST)

    Shri Ram Stuti श्रीराम के सबसे बड़े भक्त हनुमान जी को ही कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी का अवतार ही श्री राम की सहायता के लिए हुआ था। इनके पराक्रम की गाथाएं तो अनगिनत हैं।

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    Shri Ram Stuti: बजरंगबली को करना है प्रसन्न तो पूजा करते समय जरूर पढ़ें श्रीराम स्तुति

    Shri Ram Stuti: श्रीराम के सबसे बड़े भक्त हनुमान जी को ही कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी का अवतार ही श्री राम की सहायता के लिए हुआ था। इनके पराक्रम की गाथाएं तो अनगिनत हैं। इनके नाम की बात करें तो हनुमान जी की ठुड्डी इन्द्र के वज्र से टूट गई थी। ऐसे में उनका नाम हनुमान पड़ गया। इसके अलावा ये अनेक नामों से जाने जाते हैं जिनमें बजरंग बली, मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, शंकर सुवन आदि शामिल हैं। इन्हें बजरंगबली के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। इन्हें पवन-पुत्र भी कहा जाता है क्योंकि इन्हें पालने में वायु और पवन दोनों ही बेहद अहम भूमिका थी।

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    हनुमान जी हमेशा ही श्री राम के नाम का जाप करते थे। मान्यता है कि अगर बजरंगबली के भक्त श्रीराम के नाम का जाप करें तो हनुमान जी प्रसन्न हो जाते हैं। ऐसे में बजरंगबली की पूजा करने से पहले अगर रघुनंदन राम की यह स्तुति की जाए तो व्यक्ति पर हनुमान जी कृपा-दृष्टि बनी रहती है।

    श्रीराम स्तुति:

    श्रीरामचंद्र कृपालु भजमन हरण भव भयदारुणं।

    नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर-कंज पद कन्जारुणं।।

    कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरज सुन्दरं।

    पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमि जनक सुतावरं।।

    भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकंदनं।

    रघुनंद आनंदकंद कोशलचंद दशरथ-नन्दनं।।

    सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।

    आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खरधूषणं।।

    इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं।

    मम ह्रदय-कंज निवास कुरु, कामादी खल-दल-गंजनं।।

    मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सांवरो।

    करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।

    एहि भांती गौरि असीस सुनी सिय सहित हियं हरषीं अली।

    तुलसी भवानिही पूजि पुनी पुनी मुदित मन मंदिर चली।।

    ।।सोरठा।।

    जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

    मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।

    ।।सियावर रामचंद्र की जय।।

    डिस्क्लेमर

    इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '