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Shani Pradosh Vrat: आज है शनि प्रदोष व्रत, जानें पूजा विधि, मुहूर्त, कथा एवं महत्व

Shani Pradosh Vrat वैशाख मास का प्रदोष व्रत आज 08 मई दिन शनिवार को है। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव की विधि विधान से पूजा की जाती है। शनि प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति को संतान की प्राप्ति होती है।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Fri, 07 May 2021 11:30 AM (IST)Updated: Sat, 08 May 2021 06:43 AM (IST)
Shani Pradosh Vrat: आज है शनि प्रदोष व्रत, जानें पूजा विधि, मुहूर्त, कथा एवं महत्व
Shani Pradosh Vrat: आज है शनि प्रदोष व्रत, जानें पूजा विधि, मुहूर्त, कथा एवं महत्व

Shani Pradosh Vrat: वैशाख मास का प्रदोष व्रत आज 08 मई दिन शनिवार को है। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव की विधि विधान से पूजा की जाती है। शनि प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति को संतान की प्राप्ति होती है। जागरण अध्यात्म में जानते हैं शनि प्रदोष व्रत की तिथि, पूजा मुहूर्त, पूजा विधि, कथा आदि के बारे में।

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शनि प्रदोष व्रत तिथि

वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 08 मई को शाम 05 बजकर 20 मिनट से हो रहा है। जिसका समापन 09 मई को शाम 07 बजकर 30 मिनट पर होगा।

शनि प्रदोष पूजा मुहूर्त

शनि प्रदोष व्रत की पूजा के लिए आपको 02 घंटे 07 मिनट का समय प्राप्त होगा। 08 मई को शाम 07 बजकर 01 मिनट से रात 09 बजकर 07 मिनट के मध्य आप भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं।

शनि प्रदोष पूजा विधि

प्रदोष व्रत के दिन प्रात: स्नान आदि से निवृत होकर शनि प्रदोष व्रत एवं पूजा का संकल्प लें। इसके बाद भगवान शिव की दैनिक पूजा करें। फलाहार करते हुए व्रत करें। फिर शाम को प्रदोष मुहूर्त में भगवान शिव को बेलपत्र, भांग, धतूरा, मदार, गाय का दूध, गंगा जल, शहद, फूल आदि अर्पित करें। उनको धूप, गंध, कपूर आदि से आरती करें। पूजा के समय शिव चालीसा का पाठ कर सकते हैं और ओम नम:​ शिवाय मंत्र का जाप कर सकते हैं। पूजा के समय शनि प्रदोष व्रत की कथा का श्रवण अवश्य करें।

पूजा के समय शिव जी को मौसमी फल और मिठाई अर्पित करें। बाद में उसे प्रसाद के रुप में वितरित कर दें। रात्रि के समय में शिव जागरण करें। फिर अगले दिन स्नान के बाद शिव पूजा करें, ब्राह्मणों को दान दें। फिर पारण करके व्रत को पूरा करें।

शनि प्रदोष व्रत कथा

प्राचीन समय में एक नगर में एक सेठ अपने परिवार के साथ निवास करता था। विवाह के काफी समय बाद भी उसे संतान सुख नहीं मिला। इससे सेठ और सेठानी दुखी थे। एक दिन दोनों ने तीर्थ यात्रा पर जाने का फैसला किया। शुभ मुहूर्त में दोनों तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े। रास्ते में एक महात्मा मिले। दोनों ने उस महात्मा से आशीष लिया।

ध्यान से विरक्त होने के बाद उस साधु ने दोनों की बातें सुनीं। फिर दोनों को शनि प्रदोष व्रत करने का सुझाव दिया। तीर्थ यात्रा से आने के बाद उन दोनों ने विधि विधान से शनि प्रदोष का व्रत​ किया। भगवान शिव की पूजा की। कुछ समय बाद सेठानी मां बनी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया। शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से उन दोनों को संतान की प्राप्ति हुई।


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