Shani Pradosh Vrat 2024 Katha: प्रदोष व्रत में जरूर करें इस कथा का पाठ, जीवन में होगा खुशियों का आगमन
भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत आज है। अगर आप भी भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो शनि प्रदोष व्रत के दिन पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ जरूर करें। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और जीवन में खुशियों का आगमन होता है। आइए जानते हैं प्रदोष व्रत कथा के बारे में।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shani Pradosh Vrat Katha: हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत किया जाता है। मान्यता के अनुसार, इस तिथि पर भगवान भोलेनाथ की उपासना करने से साधक को आरोग्य जीवन का वरदान प्राप्त होता है। साथ ही शुभ फल की प्राप्ति के लिए व्रत भी किया जाता है। इस बार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में प्रदोष व्रत आज यानी 6 अप्रैल, 2024 दिन शनिवार को है। शनिवार को पड़ने के कारण इसे शनि प्रदोष के नाम से जाना जाता है। यदि आप भी भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो शनि प्रदोष व्रत के दिन पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ जरूर करें। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और जीवन में खुशियों का आगमन होता है। आइए जानते हैं प्रदोष व्रत कथा के बारे में।
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शनि प्रदोष व्रत कथा(Shani Pradosh Vrat Katha in Hindi)
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में अंबापुर गांव में एक ब्रह्माणी रहती थी। उसके पति की मृत्यु के बाद ब्रह्माणी भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करती थी। एक दिन जब भिक्षा मांगकर लौट रही थी। तो वह दोनों बच्चों को देख दुखी हो गई। वह सोचने लगी कि इन दोनों बालक के माता-पिता कौन हैं? इसके बाद वह दोनों बच्चों को घर ले आई। समय बीतने के बाद बालक बड़े हो गए। एक दिन ब्रह्माणी दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास जा पहुंची। ऋषि शांडिल्य को नमस्कार कर दोनों बालकों के माता-पिता के बारे में जानना चाहा।
तब ऋषि शांडिल्य ने कहा-हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ नरेश के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनका राजपाट छीन गया है। अतः ये दोनों राज्य से पदच्युत हो गए हैं। यह सुन ब्राह्मणी ने कहा-हे ऋषिवर! ऐसा कोई उपाय बताएं कि इनका राजपाट वापस मिल जाए। ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने के लिए कहा। इसके बाद ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने प्रदोष व्रत किया। उन दिनों विदर्भ नरेश के बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई। दोनों विवाह करने के लिए राजी हो गए। यह जान अंशुमती के पिता ने गंदर्भ नरेश के विरुद्ध युद्ध में राजकुमारों की सहायता की। इस युद्ध में राजकुमारों ने विजय हासिल की। प्रदोष व्रत के पुण्य प्रताप से राजकुमारों को राजपाट वापस मिल गया। उस समय राजकुमारों ने ब्राह्मणी को दरबार में विशेष स्थान प्रदान किया।
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