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    Shani Chalisa: न्याय के देवता होंगे प्रसन्न, शनिवार के दिन जरूर करें शनि चालीसा का पाठ

    By Jagran NewsEdited By: Suman Saini
    Updated: Sat, 07 Oct 2023 07:00 AM (IST)

    Shani Chalisa शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित है। इस खास दिन उनकी अगर विशेष पूजा की जाए तो वो आपके जीवन के सभी दुखों को दूर करते हैं। ऐसे में शनिवार के दिन शनि चालीसा का पाठ हर किसी के लिए बेहद फलदायी होता है। इसके पाठ से आपके जीवन के सभी विकार दूर होते हैं। आइए यहां पढ़ते हैं शनि चालीसा -

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    Shani Chalisa शनिवार के दिन करें शनि चालीसा का पाठ।

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Shani Dev Puja: शनिदेव को न्याय का देवता भी कहा जाता है। एक बार आपके ऊपर भगवान शनि की कृपा हो जाए तो मानों आपके जीवन की सभी मुश्किलें छड़ भर में दूर हो जाएंगी। शनि देव को प्रसन्न करने के लिए हमारे ज्योतिष शास्त्र में कई सारे विशेष उपाय बताए गए हैं। लेकिन इन उपाय को करने से पूर्व इस बात को लोग भूल जाते हैं कि न्याय के देवता आपके कर्म को भी देखते हैं। ऐसे में अगर आपको शनि देव को प्रसन्न करना है तो अपने आचरण को सही दिशा में रखें।

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    शनि चालीसा का पाठ देगा अभय वरदान -

    दोहा

    'जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।

    दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥

    जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।

    करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥

    ।। चौपाई।।

    जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।

    चारि भुजा, तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छवि छाजै।।

    परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।

    कुण्डल श्रवण चमाचम चमके । हिये माल मुक्तन मणि दमके।।

    कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं आरिहिं संहारा।।

    पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन । यम, कोणस्थ, रौद्र, दुख भंजन।।

    सौरी, मन्द, शनि, दश नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा।।

    जा पर प्रभु प्रसन्न है जाहीं । रंकहुं राव करैंक्षण माहीं।।

    पर्वतहू तृण होई निहारत । तृण हू को पर्वत करि डारत।।

    राज मिलत बन रामहिं दीन्हो । कैकेइहुं की मति हरि लीन्हों।।

    बनहूं में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चतुराई।।

    लखनहिं शक्ति विकल करि डारा । मचिगा दल में हाहाकारा।।

    रावण की गति-मति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई।।

    दियो कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग बीर की डंका।।

    नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा । चित्र मयूर निगलि गै हारा।।

    हार नौलाखा लाग्यो चोरी । हाथ पैर डरवायो तोरी।।

    भारी दशा निकृष्ट दिखायो । तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो।।

    विनय राग दीपक महं कीन्हों । तब प्रसन्न प्रभु है सुख दीन्हों।।

    हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी । आपहुं भरे डोम घर पानी।।

    तैसे नल परदशा सिरानी । भूंजी-मीन कूद गई पानी।।

    श्री शंकरहि गहयो जब जाई । पार्वती को सती कराई।।

    तनिक विलोकत ही करि रीसा । नभ उडि़ गयो गौरिसुत सीसा।।

    पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी । बची द्रौपदी होति उघारी।।

    कौरव के भी गति मति मारयो । युद्घ महाभारत करि डारयो।।

    रवि कहं मुख महं धरि तत्काला । लेकर कूदि परयो पाताला।।

    शेष देव-लखि विनती लाई । रवि को मुख ते दियो छुड़ई।।

    वाहन प्रभु के सात सुजाना । जग दिग्ज गर्दभ मृग स्वाना।।

    जम्बुक सिंह आदि नखधारी । सो फल जज्योतिष कहत पुकारी।।

    गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।।

    गर्दभ हानि करै बहु काजा । गर्दभ सिद्घ कर राज समाजा।।

    जम्बुक बुद्घि नष्ट कर डारै । मृग दे कष्ट प्रण संहारै।।

    जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी।।

    तैसहि चारि चरण यह नामा । स्वर्ण लौह चांजी अरु तामा।।

    लौह चरण पर जब प्रभु आवैं । धन जन सम्पत्ति नष्ट करावै।।

    समता ताम्र रजत शुभकारी । स्वर्ण सर्व सुख मंगल कारी।।

    जो यह शनि चरित्र नित गावै । कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।

    अदभुत नाथ दिखावैं लीला । करैं शत्रु के नशि बलि ढीला।।

    जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत शनि ग्रह शांति कराई।।

    पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत।।

    कहत रामसुन्दर प्रभु दासा । शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।'

    ।। दोहा ।।

    ''पाठ शनिश्चर देव को, की हों विमल तैयार ।

    करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार।।''

    Writer - Vaishnavi Dwivedi

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'